
-डॉ विवेक कुमार मिश्रा-

मेला सभ्यता और संस्कृति का उत्सव है। मेले में आकर हम मुक्त हो जाते हैं। एक ऐसा बाजार जो जीवन का उत्सव रचता है । यहां सबके लिए कुछ न कुछ होता है कोई ऐसा नहीं जो यह कहे कि मेला में मेरे लिए कुछ नहीं है । अरे!यदि मेला में नहीं है तो फिर कहां इच्छाएं पूरी होंगी । मेला में लोगों का हुजूम उमड़ रहा है कोई झूला झूल रहा जो झूल नहीं पा रहा है वह देखकर आनंद ले रहा है। भीड़ भी यहां भीड़ से ही अनुशासित होती है सब अपने अपने हिसाब से चलते रहते हैं । यहीं मेला का सौंदर्य है । जो गति से जीवन की दौड़ से संचालित होता रहता है।