
निखिलेश मिश्र
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होली के ठीक सांतवे दिन अनुराधा नक्षत्र में गंगा मेला का त्यौहार संपूर्ण विश्व में केवल कानपुर में मनाया जाता है। आज गंगा मेला का यही अवसर है।
इस दिन कानपुर में सरसैया घाट के किनारे जगह जगह विभिन्न प्रतिष्ठानों के स्टाल लगते हैं जहां लोग आते हैं एक दूसरे से गले लगते हैं, भेंट करते हैं, मिठाई खाते हैं और चले जाते हैं। यही है असली होली मिलन जो पूरी दुनिया में सिर्फ और सिर्फ एक जगह होता है कानपुर में, नाम है गंगा मेला और रंग तो इतना धुआंधार खेला जाता है कि शायद इतना रंग असली होली वाले दिन भी नहीं चलता है। पूरा दिन शहर बन्द रहता है लेकिन रंग चालू रहता है।
मा गंगा कानपुर की पहचान हैं और गंगामेला जग प्रसिद्ध है। इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
कानपुर का ऐतिहासिक हटिया गंगा मेला मार्च माह को अनुराधा नक्षत्र में मनाया जा रहा है। इस दिन लोग रंगों से भरे बैग और ड्रम के ठेले लेकर पूरे शहर में घूमते हैं और एक दूसरों को रंग लगाते हैं। ये रंग खेलने की प्रथा होलिका दहन वाले दिन से शुरू होकर अगले सात दिनों तक जारी रहती है।
आजादी से पहले हटिया, शहर का हृदय हुआ करता था, यहां पर लोहा, कपड़ा और गल्ले का व्यापार होता था। व्यापारियों के यहां आजादी के दीवाने और क्रांतिकारी डेरा जमाते और आंदोलन की रणनीति बनाते थे। गुलाब चंद सेठ हटिया के बड़े व्यापारी हुआ करते थे, जो होली पर बड़ा आयोजन करते थे।
जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपने पूरे चरम पर था तब उस वक्त सन् 1942 में ब्रिटिश सरकार ने कानपुर में होली खेलने पर पाबंदी लगा दी थी। तब एक बार होली के दिन अंग्रेज अधिकारी घोड़े पर सवार होकर आए और होली बंद करने को कहा तो गुलाब चंद सेठ ने साफ मना कर दिया। अंग्रेज अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी का विरोध करने पर जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त पार्षद, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां को भी हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार करने के बाद सरसैया घाट स्थित जिला कारागार में बंद कर दिया।
इसके परिणाम स्वरूप लोगों ने ऐलान किया है कि जब तक गिरफ्तार किए गए लोगों को नहीं छोड़ा जाता तब तक हम होली खेलते रहेंगे। लोगों के इस आंदोलन के सामने ब्रिटिश सरकार ने हार मान ली और गिरफ्तार किए गए लोगों को छोड़ दिया गया। जिस दिन उन लोगों को छोड़ा गया उस दिन, अनुराधा नक्षत्र था। तभी से हर साल गंगा मेले का आयोजन अनुराधा नक्षत्र के दिन किया जाता है।
तब हटिया के लोगों ने ही उपरोक्त का विरोध करते हुए फैसला लिया था कि वे अपने धार्मिक त्यौहार को पूरे उत्साह से मनाएंगे। इसी कड़ी में वर्ष 1942 में कानपुर के हटिया में आजादी का झंडा लहरा दिया गया जबकि देश को आजादी 1947 में मिली थी। कानपुर में इस साल यानी आज गंगा मेले की 82वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी।
होलिका दहन से लेकर गंगा मेला तक होली का निरंतर सफर कानपुर में सात दिन तक चलता है। सप्ताह भर की इस होली से हटिया बाजार में होरियारों की गिरफ्तारी और आंदोलन के बाद उन्हें छोडऩे की जीत की ये कहनी जुड़ी है लेकिन यह परंपरा उससे पहले से मौजूद थी। इसके विषय में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं, हालांकि शहर में गंगा मेला पर होली खेलने की सन् 1942 की कहानी अधिक चर्चित है लेकिन यह परंपरा काफी पुरानी है।
कहा जा सकता है कि गंगा मेला आजादी के लिए बलिदान हुए सपूतों की याद दिलाती है।
निखिलेश मिश्र
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