
-मनु वाशिष्ठ-

पुराने समय में गर्मी की दोपहर में खाली समय का उपयोग, और कार्यों के अलावा कपड़ों पर सुंदर कढ़ाई करके भी किया जाता था। कपड़ों को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए बच्चों के कपड़े, साड़ी, चादर, तकिए के गिलाफ, टेबल क्लॉथ, विभिन्न प्रकार के कवर, रुमाल, सूट्स आदि पर कढ़ाई की जाती थी। अभी भी घरों में ये सामान मिल जाते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी सीखते हुए लड़कियां इस कला में पारंगत हो जाती थीं। गर्मियों की दोपहर छुट्टियों में इसे बखूबी अंजाम दिया जाता था। और यह लड़कियों का एक अतिरिक्त गुण माना जाता था। लड़कियों की शादी तय होने पर चादर सेट, रूमाल पर कढ़ाई द्वारा नाम के अक्षर लिखना या फूल बनाना अभी भी कइयों को याद होगा। यादगार तोहफे के रुप में कई गृहणियों ने संजो कर भी रखे होंगे।
कढ़ाई करने के लिए कई तरह के स्टिच का प्रयोग किया जाता है जैसे कच्चा टांका, कांथा स्टिच, चैन स्टिच, बटन होल स्टिच, लेजी डेजी स्टिच, भरवां स्टिच, साटन स्टिच, क्रॉस स्टिच, सिंधी कढ़ाई, कश्मीरी कढ़ाई, इस तरह कई तरह के स्टिचिंग से कढ़ाई की जाती थी। सबसे आसान होती थी #क्रॉस स्टिच और इसको मैटी कपड़े पर बनाया जाता था, तथा यह शुरुआती सीखने वाली लड़कियों के लिए बहुत आसान रहता था। और कढ़ाई के लिए तो सामान्य सुई प्रयोग होती थी लेकिन मैटी (क्रॉस स्टिच) की सुई भी मोटी नोंक वाली होती थी।
ट्रेसिंग पेपर या कार्बन पेपर से कपड़े पर पहले डिजाइन छापा जाता और फिर उसको लकड़ी के या स्टील के फ्रेम में कपड़े को टाइट लगाकर फिर कढ़ाई की जाती थी। आजकल तो लड़कियों को टांका लगाना, बटन लगाना ही नहीं आता, फिर भला कढ़ाई तो दूर की बात है। अब तो रेडीमेड का जमाना है, मशीन द्वारा एंब्रॉयडरी किए हुए कपड़े मिल जाते हैं तो कढ़ाई में कौन समय लगाए। सही भी है लड़कियां भी अब पढ़ने, कैरियर बनाने में समय दे रही हैं, सुई धागे वाले हाथ अब ऑपरेशन कर टांके लगा रहे हैं। सुई धागे वाले हाथ बंदूक, बैट, कलम, तलवार, स्टेयरिंग पकड़ रहे हैं तो सारी चीजें कैसे संभव है। लेकिन एक बात तो सच है कि कपड़ों पर हाथ की कढ़ाई में जो प्यार अपनापन का अहसास होता था, वह रेडीमेड में नहीं।
__ मनु वाशिष्ठ, कोटा जंक्शन राजस्थान