-ब्रजेश विजयवर्गीय-
भारत का राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र गंभीर वायु प्रदूषण की चपेट में है। दिल्ली, गुड़गांव और फरीदाबाद के 750 से अधिक स्कूली बच्चों ने मंगलवार 13 दिसंबर को अरावली दिवस मनाने के लिए अपने क्लास रूम छोड़ दिए। भारत के जलपुरुष डॉ राजेंद्र सिंह, रिज बचाओ आंदोलन के दीवान सिंह, मेवात जल बिरादरी के इब्राहिम खान, स्कूलों से आए शिक्षक और अन्य नागरिकों ने इस कार्यक्रम में इन बच्चों का साथ दिया।
“अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन” के युवा ब्रिगेड के रूप में विभिन्न एनसीआर स्कूलों के अरावली चौप्टर के बच्चों ने 13 दिसंबर 2022 को ‘अरावली दिवस’ के रूप में चिह्नित कर मनाने का फैसला किया ताकि सरकार का इस पर्वत श्रंखला के महत्व के प्रति ध्यान आकर्षित किया जा सके। अरावली श्रंखला प्रदूषण कम करने के अलावा मरुस्थलीकरण को रोकने का, जल पुनर्भरण करने का और वन्य जीवों को आवास प्रदान करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है। खनन से 25ः से अधिक अरावली श्रंखला को नष्ट कर दिया है जो कि अरबों वर्ष पुरानी है और दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है। हमें डर है कि अगर हम अभी कार्यवाही नहीं करते हैं, तो कुछ वर्षों में अरावली हमारी भूगोल की पाठ्यपुस्तकों में सिर्फ एक अध्याय बनकर रह जाएगी। कक्षा 4 से कक्षा 10 तक के 750 बच्चों ने अपने चेहरों पर अरावली में पाए जाने वाले विभिन्न पशु-पक्षियों और अन्य जीवों की प्रजातियों के चित्र बनाए हुए थे ,ताकि इन जीव जंतुओं के घर पर आए खतरे के बारे मे सरकार का ध्यान आकर्षित कर सकें। गुड़गांव के हेरीटेज एक्सपेरीन्शियल के कक्षा 6 के छात्र कौशिकी भट्टाचार्य ने कहा कि अरावली हमे स्वच्छ हवा और पानी की सुरक्षा देने वाली जीवन रेखा है और इसे बचाने के उद्देश्य से हम सब बच्चों ने एक प्रतीकात्मक चिपको आंदोलन किया और अरावली पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में एक मानव श्रृंखला बनाई। हम सब बच्चों ने उत्तर पश्चिम भारत के सभी 4 राज्यों में अरावली पर्वत श्रंखला को बचाने के लिए शपथ ली ताकि इस जीवनदायिनी और वन्यजीवों के घर की रक्षा की जा सके और ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, खाद्य असुरक्षा और पानी की कमी को और खराब होने से रोका जा सके।
जंगल में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बच्चों ने अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भारत की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला को बचाने की और अपनी चिंताओं और मांगों के बारे में बात की।
अरावली में खनन और रियल एस्टेट विकास के साथ-साथ, एनसीआर ड्राफ्ट क्षेत्रीय योजना 2041 का खतरा अभी भी हमें परेशान कर रहा है। यदि यह योजना लागू की जाती है तो हमारी बहुमूल्य अरावली और मानव निर्मित जल निकायों, सहायक नदियों और नदियों के खादर जैसे अन्य प्राकृतिक इकोसिस्टम्स के 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा खत्म हो जाएगा और 4 सबसे अधिक प्रदूषित एनसीआर राज्यों के लिए जो केवल 10 प्रतिशत फारेस्ट कवर का टारगेट अभी है, वह भी खत्म हो जाएगा।
फरीदाबाद के क्च्ै स्कूल के छात्र विबुध ने कहा किदिल्ली-एनसीआर में हवा की खराब गुणवत्ता के कारण हमारे कई दोस्त सांस की बीमारी से पीड़ित हैं। भारत के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का वायु प्रदूषण और भी बदतर हो जाएगा यदि फॉरेस्ट कवर के लक्ष्य को राष्ट्रीय औसत यानी 20ः तक नहीं बढ़ाया गया और हमारी अरावली को नष्ट किया गया क्योंकि ये हमारे हरे फेफड़े के समान हैं और दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले लाखों लोगों की रक्षा थार मरुस्थल से आने वाले रेत के तूफान से करने वाले एकमात्र अवरोधक हैं। इसके अतिरिक्त, अरावली अपनी प्राकृतिक दरारों के माध्यम से हर साल जमीन में प्रति हेक्टेयर 2 मिलियन लीटर पानी डालने की क्षमता रखती है और इस प्रकार पानी की कमी वाले दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद, एनसीआर के अन्य शहरों के लिए एक महत्वपूर्ण जल पुनर्भरण क्षेत्र के रूप में कार्य करती है। राजस्थान और हरियाणा मे कई जगह निकासी रिचार्ज से 300ः अधिक है और भूजल स्तर खतरनाक रूप से कम है। अरावली के बिना, दिल्ली-एनसीआर में जीवन नहीं पनप सकता है और हमारा भविष्य खतरे में है।
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कक्षा नौ के छाऋ लक्ष्य ने कहा कि “हमारी मांग है कि अरावली की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कानूनों को मजबूत किया जाए और इकोसिस्टम संरक्षण हमारे अत्यधिक संकटग्रस्त भविष्य की रक्षा के लिए विकास योजनाओं का एक अभिन्न अंग बनाया जाए। हम यह भी मांग करते हैं कि दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात 4 राज्यों में फैली पूरी अरावली श्रृंखला को एक स्थायी बायोस्फीयर रिजर्व और इकोसिस्टम विरासत स्थल घोषित किया जाये जहां खनन, वनों की कटाई, निर्माण और उद्योग की अनुमति नहीं हो । विकास और प्रगति हमारे प्राकृतिक ईकोसिस्टम की कीमत पर नहीं हो सकते। हमारे देश में शायद विकास की परिभाषा बदली जानी चाहिए ताकि भविष्य को सुरक्षित रखा जा सके। भारत जलवायु परिवर्तन के मामले में दुनिया के सबसे कमजोर देशों में से एक है और अरावली रेंज उत्तर पश्चिम भारत का जलवायु नियामक है जिसे हमारे भविष्य के लिए बचाने की जरूरत है। हम एक स्वतंत्र ‘अरावली संरक्षण प्राधिकरण’ की स्थापना की मांग करते हैं जो संपूर्ण अरावली रेंज को एक जीवित ईकोसिस्टम के रूप में देखेगा और इसके बचे हुए 75ः को उत्तर पश्चिम भारत की इस पृष्ठ भूमि से गायब होने से बचाएगा।
गुरुग्राम में सुगम स्कूल की कक्षा 9 के छात्र कृष्णा ने कहा “बच्चो की एक और बहुत महत्वपूर्ण मांग यह है कि आवास और शहरी मामलों के मंत्री श्री हरदीप पुरी ने 13 सितंबर 2022 को हमसे जो वादे किए थे उन्हें पूरा करें। तब एनसीआर के विभिन्न स्कूलों के 100 बच्चे सरकारी अधिकारियों और मंत्री के पास गए थे ताकि दिल्ली में एनसीआर ड्राफ्ट क्षेत्रीय योजना 2041 में पर्यावरणीय खामियों के बारे में चर्चा कर सकें और हममें से कुछ ने मंत्रीजी से मुलाकात की थी। मंत्री जी ने हमसे वादा किया था कि वह इस योजना पर चर्चा करने के लिए एक हितधारक सम्मेलन आयोजित करेंगे और छात्रों को इसका हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित करेंगे। इस वायदे को किए हुए 3 महीने बीत चुके हैं। नवंबर में बाल दिवस के दौरान, एनसीआर के विभिन्न स्कूलों के स्टूडेंट्स 4 अरावली टीम के कई सदस्यों ने मंत्री जी को उनकी बात को याद दिलाने के लिए ईमेल भेजे थे, लेकिन हमें अभी तक उनका या उनके कार्यालय का जवाब नहीं मिला है। क्या हमारे चुने हुए नेताओं की बातों का कोई मतलब नहीं है?”,
गुरुग्राम की छात्रा मायरा ने कहा. “हमारी मांग है कि विभिन्न एनसीआर स्कूलों के “स्टूडेंट्स फॉर अरावली” टीम के सदस्यों के साथ-साथ डब्ल्यू डब्ल्यू एफ इंडिया, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट, टी ई आर आई, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स, इंटैक, आईआईटी दिल्ली, अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन और अन्य संगठनों के विशेषज्ञ जैसे डॉ. राजेंद्र सिंह, नेहा सिन्हा, प्रदीप कृष्णन, विजय धस्माना, चेतन अग्रवाल, श्री मनोज मिश्रा , सुप्रीम कोर्ट के वकील श्री संजय पारिख और अन्य प्रमुख विशेषज्ञो, पर्यावरण पत्रकारों और एनसीआर के नागरिक समाज के सदस्यों को अपने सुझाव देने के लिए आमंत्रित किया जाये ताकि एनसीआर ड्राफ्ट प्लान 2041 को पर्यावरणीय संरक्षण के तौर पर मजबूत किया जा सके।
13 दिसंबर 2022 को न केवल गुड़गांव और फरीदाबाद में बल्कि एनसीआर के अन्य राज्यों में भी बच्चे अपने स्कूलों से बाहर आए और प्रतिगामी एनसीआर ड्राफ्ट प्लान 2041 में संशोधन की मांग की। 250 से अधिक बच्चे हिंडन नदी ,जो कि यमुना की सहायक नदी है, उसके पास एकत्रित हुए और राजस्थान में अलवर जिले के निमली में अरावली की पहाड़ियों के पास इक्ट्ठे हुए और इस क्षेत्रीय योजना में पर्यावरणीय कमजोरियों को दूर करने की मांग की, जिसका सीधा असर इन राज्यों के 25 जिलों के लोगों पर पड़ेगा।
डॉ. राजेंद्र सिंह, अरावली दिवस मनाने के लिए बच्चों के साथ शामिल हुए। उन्होंने कहा, एनसीआर ड्राफ्ट क्षेत्रीय योजना 2041 अपने मौजूदा स्वरूप में एक वास्तविक आपदा है और हमारे सामान्य भविष्य और हमारी युवा पीढ़ियों के खिलाफ है और इसे लागू नहीं किया जा सकता है। सभी अरावली पहाड़ियों और जंगलों, वेट्लंड्स, नदियों के साथ-साथ उनकी सहायक नदियाँ और बाढ़ के मैदान, झीलें, प्राकृतिक और मानव निर्मित जल निकाय आदि चाहे वे अधिसूचित हों या नहीं या राजस्व रिकॉर्ड में उनका उल्लेख किया गया हो या नहीं, ग्राउंड ट्रूथिंग अभ्यासों में पहचाना गया हो या नहीं, इन सबको नई मसौदा क्षेत्रीय योजना 2041 के तहत सुरक्षा दी जाये। और दिल्ली-एनसीआर के 4 राज्यों में आने वाले सभी जिलों की वायु गुणवत्ता और जल सुरक्षा को बढ़ाने के लिए फॉरेस्ट कवर लक्ष्य में प्रमुखता से वृद्धि की जाये।