जड़ काष्ठ शिल्प में जीवन के रूपाकार

सर्जक की आंख और ही होती है वह, वह देख लेता है जो नहीं दिखता पर जिसका अस्तित्व होता है। इसी अस्तित्व को देखने के क्रम में हम जड़ों की ओर आते हैं । जड़ों को हर कोई नहीं बस कलाकार और सर्जक ही देखता है इस क्रम में वह तलाशता रहता है कि कहां हैं जड़ें जिसमें जीवन और प्राण के स्पंदन को महसूस किया जाएं।

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-जड़ों के भीतर जीवन के अनंत रंग को देखा जा सकता है….

डॉ रमेश चंद मीणा तथा डॉ बसंत लाल बामनिया न केवल जड़ को खोज कर लायें । बल्कि जड़ में तरह तरह की आकृतियों को देखते हुए उन्हें उभारने का काम किया, उन्हें नये सिरे से रचा गढ़ा और इस क्रम में तरह तरह के रंग से स्ट्रोक देते हुए एक नई दुनिया ही रच डाली । यह जड़ तने के साथ लगा हुआ है और अपने अस्तित्व को इस तरह घोषित करता चलता है कि आप देखें उन जड़ों को जो आकाश में नहीं होती जो धरती (माटी) के नीचे होती पर वह आकार वह अस्तित्व लिए होती हैं जो आसमान में खिलेगा।

– विवेक कुमार मिश्र-

vivek kumar mishra
विवेक कुमार मिश्र

जड़ जो पृथ्वी के नीचे नीचे आकार लेता है जड़ें कहा से कहां तक जा सकती हैं इस बात को हर कोई नहीं जान सकता न हर कोई देख पाता है कि कहां और कैसे जड़ें हैं या जड़ें किस तरह कैसे आकार ग्रहण करती हैं। जड़ में फूल देखना सबके बस का नहीं है यह तो सर्जक ही देख सकता है या साधक देखता है। यह सब कबीर की उलटबांसी की तरह है कि जिस तथ्य को दुनिया देख रही है उससे अलग दिशा में कवि लेखक सर्जक और साधक का तथ्य होता है। यह देखना भी सामान्य नहीं होता जब ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं तभी दिखते हैं और इस जड़ में खिले फूल को देखते हुए साधक को कुछ और देखने की चाह नहीं रहती है। एक तरह से यह सिद्धि सी हो जाती है जहां जड़ में फूल और तरह तरह की आकृतियां देख रहे हैं रच रहे हैं। यहीं तो कला है जो अलग थलग छोड़ दिये गये संसार में आपको श्रेष्ठ रचना दिखाती है। आप तने को देखते हैं फूल पत्ती को देखते हैं और जो कुछ आसमान में है जो दिख रहा है उससे कहीं बहुत ज्यादा ऐसा कुछ होता है जिसे सब नहीं देखते, इसे केवल कलाकार, सर्जक देखता है। सर्जक की आंख और ही होती है वह, वह देख लेता है जो नहीं दिखता पर जिसका अस्तित्व होता है। इसी अस्तित्व को देखने के क्रम में हम जड़ों की ओर आते हैं । जड़ों को हर कोई नहीं बस कलाकार और सर्जक ही देखता है इस क्रम में वह तलाशता रहता है कि कहां हैं जड़ें जिसमें जीवन और प्राण के स्पंदन को महसूस किया जाएं। इसी बात को पिछले दिनों में चित्रकला विभाग के दो कला शिक्षक जो सर्जनात्मकता की ज़िद में आकाश की ओर न देख जड़ों की ओर आते हैं और जड़ से आकाश में खिली आकृतियों को उभारने का काम करते हैं । यह जिज्ञासा बड़ी है कि क्या कुछ है हमारे आस-पास और हम कहां इस तथ्यों को देखने की कोशिश करते हैं या यूं ही बस भटक रहे हैं । इस खोज में ही चल रहे डॉ रमेश चंद मीणा तथा डॉ बसंत लाल बामनिया न केवल जड़ को खोज कर लायें । बल्कि जड़ में तरह तरह की आकृतियों को देखते हुए उन्हें उभारने का काम किया, उन्हें नये सिरे से रचा गढ़ा और इस क्रम में तरह तरह के रंग से स्ट्रोक देते हुए एक नई दुनिया ही रच डाली । यह जड़ तने के साथ लगा हुआ है और अपने अस्तित्व को इस तरह घोषित करता चलता है कि आप देखें उन जड़ों को जो आकाश में नहीं होती जो धरती (माटी) के नीचे होती पर वह आकार वह अस्तित्व लिए होती हैं जो आसमान में खिलेगा । यहां जड़ में ही जीवन और फूल उसी तरह खिले हुए दिखते हैं जो अपनी सामान्य दशा में जीवन के क्रम में आसमान में खिलते हैं पर यह सामान्य दशा होती है पर यहां जब सर्जना की दिशा में कला की दुनिया में आते हैं तो जड़ में वो सारी आकृति दिखाई देती है जो संसार में देखी जा सकती है । यहां जड़ों में ही प्रकृति की पूरी सत्ता दिखाई देती है ।
इस जड़ काष्ठ शिल्प में स्त्री पुरुष की आकृति के साथ साथ अन्य परा शक्तियों को भी न केवल देखा जा सकता है बल्कि महसूस किया जा सकता है कि यहां वह सब है जो हमारे जीवन का आधार है । दोनों कलाकार पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से इस जड़ काष्ठ शिल्प में रंग भरते-भरते वह आकृति भी भरते जाते हैं जिसे आप देखना चाहते हैं । काष्ठ शिल्प कला मजबूत शीशम के तने से लगे हुए जड़ को लेकर जीवन को समझने की कोशिश की गयी हैं । यहां जड़ों से जो कल्ले फूटे हैं वहीं तो आकृति बनाते हैं और इन आकृतियों में प्राण भरने का काम श्वेत , श्याम और लाल व पीले रंग को लेकर सारे जीवन के रंग से यहां खेला गया है । निश्चित ही यह जड़ शिल्प बहुत बहुत दिनों तक अपने आप को प्रकट करती रहेगी और कला के इस रूप में प्रकृति के रंग को प्रस्तुत करती है। पेड़ प्रकृति को लेकर एक बड़ी चिंता के साथ इस काष्ठ शिल्प को यहां रचा गया है। यहां जो दृश्यता उभर कर आती है वह साफ साफ कहती है कि आप कुछ करें या न करें पर अपनी दुनिया में प्रकृति को संभाल कर रखें यदि आसपास की दुनिया में प्रकृति बची है तो सब कुछ बचा रहेगा और यदि यहीं नहीं रहा तो फिर चाहे जो कुछ हमारे आस-पास हो उसका कोई अर्थ नहीं हो पाता है । कितनी ही समृद्धि हो उसका क्या करेंगे यदि हमारे पास हमारी प्रकृति ने हों। प्रकृति के इसी संरक्षण को कला के माध्यम से यह काष्ठ शिल्प एक सिद्धि के रूप में सामने रखता है कि यहां से वह सब मिलेगा जो मनुष्यता के लिए जरूरी है । मनुष्य की समझ बढ़ाने के साथ साथ इस तरह के कलात्मक शिल्प हमें जगाने का भी काम करते हैं तथा यह भी कहते चलते हैं कि दुनिया को दूसरे की आंखों से न देख हमें खुद की आंख से देखना चाहिए। सही बात तो यह है कि आदमी जब जड़ों की ओर जाता है तो वास्तव उसकी वह दुनिया दिख जाती है जिसे ही पाने के लिए, जिसे देखने के लिए वह सब कुछ करता है। कलाएं हमें हमारा वह संसार दिखाती हैं जो हमसे बहुत दूर होता है या जिसे हम सीधे सीधे देख नहीं पाते उसे कला रूप में ही देख समझ पाते हैं। यहां जो जड़ काष्ठ शिल्प है वह जीवन के समस्त कल्ले को प्रकट करता है। यहां यह कहना भी ठीक होगा कि जीवन के समस्त उभार को देखना सही मायने में कला, जीवन और संसार को समझना है।

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