फूलों वाले हाथ भी अब तो। लेकर नयन कटारी निकले।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

काॅंटों की मक्कारी निकले।
अब ऐसी फुलवारी निकले।।
*
ऑंख में कचरा ढूॅंढने वाले।
काजल के व्यापारी निकले।।
*
फूलों वाले हाथ भी अब तो।
लेकर नयन कटारी निकले।।
*
शेख बिरहमन मुलला पंडित।
सबके सब दरबारी निकले।।
*
मन में ऐसी ज्वाला भड़के।
शब्दों से चिंगारी निकले।।
*
सुविधाओं में जीते कैसे।
अपने दिन सरकारी निकले।।

जिनसे थीं उम्मीदें “अनवर”।
वो शायर अख़बारी निकलेll

शकूर अनवर

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