
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
काॅंटों की मक्कारी निकले।
अब ऐसी फुलवारी निकले।।
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ऑंख में कचरा ढूॅंढने वाले।
काजल के व्यापारी निकले।।
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फूलों वाले हाथ भी अब तो।
लेकर नयन कटारी निकले।।
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शेख बिरहमन मुलला पंडित।
सबके सब दरबारी निकले।।
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मन में ऐसी ज्वाला भड़के।
शब्दों से चिंगारी निकले।।
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सुविधाओं में जीते कैसे।
अपने दिन सरकारी निकले।।
जिनसे थीं उम्मीदें “अनवर”।
वो शायर अख़बारी निकलेll
शकूर अनवर
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