पर उपदेश कुशल बहुतेरे

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लघुकथा

-डॉ. समय सिंह मीना-

samay singh meena
समय सिंह मीना

सतवीर सिंह प्रार्थना पत्र प्राचार्य के समक्ष पेश करता हुआ कहता है – सर! नमस्कार। मुझे पत्नी को परीक्षा दिलवाने बीकानेर जाना है, अतः कृपया दो दिन का अवकाश चाहिए। सतवीर ! छुट्टी नहीं मिलेगी भईया, पत्नी को इन्डिपेंडेंट बनने दो, वह पढ़ी लिखी है, अकेली जा सकती है। इन दिनों कालेज में बहुत सारा काम भी है- प्राचार्य ने कहा। प्लीज़ सर, वह अकेली नहीं जा पायेगी, मेरा साथ में जाना बहुत जरूरी है, यदि आवश्यक नहीं होता तो मैं कहता ही नहीं, सतवीर अनुनय-विनय करते हुए कहता है। मैंने कह दिया ना, नहीं तो नहीं। ठीक है सर, सतवीर मायूस होकर कक्ष से बाहर आ जाता है। कालेज से लौटते वक्त वह पुनः निवेदन करने हेतु प्राचार्य के पास जाता है तो प्राचार्य को नहीं पाकर सहायक कर्मचारी से पूछते हैं। सर, अभी-अभी रेलवे स्टेशन गए हैं, उनकी बेटी डॉक्टर है ना वह दिल्ली से आ रही है और अब तो वे सीधे घर ही जायेंगे- सहायक कर्मचारी कहता है। इस पर सतवीर आश्चर्य करता हुआ सोचता है कि ये वही सर हैं जो मेरी पत्नी को अकेले रात की ट्रेन से बीकानेर भेजने की सीख दे रहे हैं और खुद अपनी बेटी को अकेले स्टेशन से घर भी नहीं आने देना चाहते। सही कहा है- पर उपदेश कुशल बहुतेरे।

डॉ. समय सिंह मीना
सहायक आचार्य, संस्कृत
राजकीय कला महाविद्यालय, कोटा

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