ईमान हम न बेचेंगे कहते थे शान से। लेकिन वो वक़्त आन पड़ा बेचना पड़ा।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

तंग आके जो भी पास में था बेचना पड़ा।
अपना ज़मीर* अपना ख़ुदा बेचना पड़ा।।
*
शोख़ी शबाब* हुस्न अदा बेचना पड़ा।
दुल्हन को अपना रंगे-हिना* बेचना पड़ा।।
*
तुमको भी ले गया कोई तुमसे ख़रीदकर।
हमको भी अपना अहदे-वफ़ा* बेचना पड़ा।।

अख़लाक़* सारे बिक गये किरदार* भी गया।
दुनिया ख़रीदने में ये क्या बेचना पड़ा।।
*
ईमान हम न बेचेंगे कहते थे शान से।
लेकिन वो वक़्त आन पड़ा बेचना पड़ा।।
*
शेरो-सुख़न* ने यूॅं तो बहुत कुछ दिया मगर।
जो कुछ भी हमको इसमें मिला बेचना पड़ा।।
*
तुमने तो जिस्म बेच के फ़ाक़े मिटा लिये।
“अनवर” हमें भी शर्म ओ हया बेचना पड़ा।।
*

ज़मीर*आत्मा
शबाब*यौवन
रंगे हिना*मेहंदी का रंग
अहदे वफा* प्रेम में किया हुआ वादा
अखलाक*अच्छी आदतें
किरदार*चरित्र
शेरो सुखन*काव्य कविता कर्म
फ़ाके़*भूख

शकूर अनवर
9460851271

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