
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
वैसे भी है रात नशीली।
क्यों करते हो बात नशीली।।
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ऐ बारिश में भीगने वाले।
होती है बरसात नशीली।।
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चाॅंद के पीछे झूम रही है।
तारों की बारात नशीली।।
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उपवन में मस्ती का आलम।
सावन की सौग़ात नशीली।।
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कुछ नस्लों के फूल शराबी।।
कुछ फूलों की ज़ात नशीली।
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उसके सो-सो रूप निराले।।
उसकी इक-इक बात नशीली।
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दिल की बाज़ी हार के “अनवर”।
हमने खाई मात नशीली।।
शकूर अनवर
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