ऑंखें बोझिल हैं पलकें भारी हैं। हम पे गुज़री है रात पत्थर की।।

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ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

शकूर अनवर

कोई समझा न ज़ात*पत्थर की।
मुख़्तलिफ़* हैं सिफ़ात* पत्थर की।।
*
सारे इंसान हो गये पत्थर।
बन गई कायनात* पत्थर की।।
*
ऑंखें बोझिल हैं पलकें भारी हैं।
हम पे गुज़री है रात पत्थर की।।
*
देखो चमके सितारे पत्थर के।
देखो निकली बरात पत्थर की।।
*
इसके दम से खड़ा है ताज महल।
जिसमें है बात बात पत्थर की।।
*
क़ैद है कितनी ही गुफ़ाओं में।
जाने कब हो निजात* पत्थर की।।
*
हमने समझा है देवता उसको।
हमने मानी है बात पत्थर की।।
*
बात फूलों की क्या करें “अनवर”।
जब मिली है हयात* पत्थर की।।
*

ज़ात* अस्तित्व
मुख़्तलिफ़*विभिन्न
सिफ़ात*विशेषताएं
कायनात* ब्रह्मांड
निजात* मुक्ति
हयात* जीवन, जिंदगी

शकूर अनवर
9460851271

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