क़दम क़दम पे जो मुझको फ़रेब देता है। मैं लम्हा लम्हा उसी के ख़याल में गुम हूॅं।।

shakoor anwar 01
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर
सभी समझते हैं उसके ख़याल में गुम हूॅं।
मगर ये सच है में अपने ही हाल में गुम हूॅं।।
*
भटक रहा हूॅं मैं सहरा में क़ैस* की मानिन्द।
उरूजे इश्क़* हूॅं लेकिन ज़वाल* में गुम हूॅं।।
*
ज़मीं पे मैं कभी दारा कभी सिकंदर* था।
तलाश कर मुझे मैं माहो साल* में गुम हूॅं।।
*
क़दम क़दम पे जो मुझको फ़रेब देता है।
मैं लम्हा लम्हा उसी के ख़याल में गुम हूॅं।।
*
बिसाते इश्क़* पे बाज़ी पहुॅंच गई है जहाॅं।
मैं उसकी मात हूॅं बस एक चाल में गुम हूॅं।।
*
मुझे समझ मेरे चेहरे को ग़ौर से पढ़ले।
मैं एक ऐसी मुहब्बत की फ़ाल* में गुम हूॅं।।
*
मैं अपने शेरों में खोया हुआ सा हूॅं “अनवर”।
मेरा कमाल यही है कमाल में गुम हूॅं।।

क़ैस*मजनू का नाम
उरुजे इश्क़* प्रेम की पराकाष्ठा
ज़वाल* पतन
दारा सिकंदर*ये अतीत के दो बादशाहों के नाम हैं
माहो साल* महीने और साल
बिसाते इश्क़* प्रेम रूपी शतरंज खेलने का कपड़ा
फ़ाल*यानी भविष्यवाणी

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments