काम आसाॅं न समझ इश्क़ में जल जाने का। हौसला चाहिये इस शग़्ल* में परवाने का।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

काम आसाॅं न समझ इश्क़ में जल जाने का।
हौसला चाहिये इस शग़्ल* में परवाने का।।
*
तुझ से मंसूब* तमन्नाओं ने दम तोड दिया।
सिलसिला ख़त्म हुआ यूँ मेरे अफ़साने का।।
*
मयक दे में तुझे किस बात का डर है वाइज़*।
उज़्र* महफूज़ तेरे पास है समझाने का।।
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दिल पे शबख़ूॅं* जो पड़ा था वो बहुत याद आया।
आज अहसास हुआ फिर कहीं लुट जाने का।।
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अब तो उरयानी* बहुत आम हुई जाती है।
अब ज़माना भी नहीं है कोई शरमाने का।।
*
अब बुतों में कहाँ ख़्वाहिश वो ख़ुदा बनने की।
अब तो नक़्शा ही बदल डाला सनम ख़ाने का।।
*
जिस तरह जाल में फॅंसता हुआ पंछी “अनवर”।
बस वही हाल हुआ है तेरे दीवाने का।।
*

शग़्ल*काम
मंसूब*संबद्ध
वाइज़* उपदेशक
उज़्र*बहाना
महफूज़ यानी सुरक्षित
शबख़ूॅं*रात के वक्त पड़ने वाला डाका
उरयानी*नग्नता

शकूर अनवर
9460851271

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