– विवेक कुमार मिश्र-

कभी – कभी कॉफी पी लेना चाहिए
कॉफी , घर पर कम
कॉफी हाउस में ज्यादा पी जाती
कॉफी हाउस में कोई चाय नहीं मांगता
सब कॉफी की ही मांग रखते
और कॉफी अपने समय व हिसाब से आती
तब-तक के लिए कॉफी पर बातें , बहसें
और चिंतन का दौर चल पड़ता
कॉफी हाउस में बहस विचार और रचना के पक्ष को
अपने साथ ऐसे रखते चलते कि
यहीं रचना की पहली भूमि हो
और कॉफी हाउस बहस और टिप्पणी के साथ
आलोचना के घर भी होते हैं
कॉफी हाउस की बैठक में साहित्य का रस
और विचारों की खुली दुनिया ऐसे आ जाती कि
इससे सुंदर बहस की कोई जगह हो ही नहीं सकती
यहीं से न जाने कितने लेखकों ने कथा भूमि उठाया
यहीं पर अगली कहानी जन्म ले लेती
और पिछली कहानी यहीं से
चलते चलते लिखी थी
इस तरह एक बात तो तय है कि
कॉफी हाउस लेखकीय दुनिया के अड्डे
उसी तरह से हैं जैसे कि गप्पी के लिए
देशी चाय की थड़ियां
गप्पी का दिमाग चाय पर दौड़ता है
और यहां जो पहुंचे हुए लेखक हैं
जो विचारों में महीने महीने खोए रहते
एक शब्द की प्रतीक्षा में पखवाड़े बिता दें
कोई विचार न आए तो कॉफी के मग को ही
उपर नीचे करते घंटों बिता दें फिर एक दिन
ऐसा भी आ जाता कि
विचार भी गड़गड़ा कर गिर पड़ते
और कॉफी हाउस
रचना और आलोचना की उर्वर भूमि के रूप में
अपना नाम लिखा जाती
कवि – लेखक और आलोचक
कॉफी हाउस में अपना डेरा डाले हैं
एक न एक विचार उठेंगे…
कहते हैं पहुंचे हुए लोग कि …
यहां से विचार विमर्श और मन के
एक विशेष रंग का दर्शन होता है ।
– विवेक कुमार मिश्र
सह आचार्य हिंदी
राजकीय कला महाविद्यालय कोटा
एफ -9 समृद्धि नगर स्पेशल बारां रोड कोटा -324002