जब यह धरती सोयी होगी, रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

coniferous forest on a mountain slope
coniferous forest on a steep mountain slope at night

-मधु मधमन-

madhu madhuman
मधु मधुमन

सुबह -सवेरे ओस की बूँदें
देख के यूँ लगता है मानो,
जब यह धरती सोयी होगी,
रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

टूट गए होंगे कुछ सपने ,
छूट गए होंगे कुछ अपने,
बिखर गयी होगी वह पूँजी,
तिल-तिल जो संजोई होगी,
तब वह बरबस रोयी होगी।

जब यह धरती सोयी होगी,
रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

महकी-महकी सी इक बगिया,
उसकी अपनी प्यारी दुनिया ,
जिसमे उसकी जान बसी थी ,
जब वह दुनिया खोयी होगी,
तब वह बरबस रोयी होगी।

जब यह धरती सोयी होगी,
रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

डूब रहे होंगें जब तारे,
उसकी आँखों के उजियारे,
टूट गयी होगी कितनी जब,
घड़ी विदा की आयी होगी,
तब वह बरबस रोयी होगी।

जब यह धरती सोयी होगी,
रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

दर्द नहीं सह पायी होगी,
मुख से ना कह पायी होगी,
अँखियाँ तब भर आयी होंगीं
तब ये धरा की चूनर उसने
अँसुवन जल में भिगोयी होगी ।

जब यह धरती सोयी होगी,
रजनी छुप-छुप रोयी होगी।

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