जादू था उसके हुस्न का सर पर चढ़ा हुआ। उसका मिज़ाजे- जब्र* मेरे दिल को रास था।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

सहरा-नवर्दियों* में कहीं बदहवास* था।
उड़ता हुआ ग़ुबार* मेरे आस पास था।।
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पहने हुए न‌ था कोई ज़ेवर बहार का।
“रस्ते में जो भी पेड़ मिला बेलिबास था”।।
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जादू था उसके हुस्न का सर पर चढ़ा हुआ।
उसका मिज़ाजे- जब्र* मेरे दिल को रास था।।
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कितनी कहानियाँ लिखीं फ़ुरक़त* में आपकी।
क़ुरबत का तुम बताओ कोई इक़तेबास* था।।
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हर कोई बनके वाइज़ो-नासेह* मिला मगर।
हमदर्द कोई था न कोई ग़म-शनास* था।।
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दौरे-ख़िजाॅं में जिसको मयस्सर नहीं सुकूँ।
फ़स्ले-बहार में भी वही दिल उदास था।।
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हम यूँ शराबे-तल्ख़ी ए दौराॅं* को पी गये।
जैसे हमारे दिल में कोई देवदास था।।
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हम तो हमेशा करते रहे शिर्क* से गुरेज़*।
ईमान का था डर हमें मज़हब का पास था।।
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“अनवर” जहाँ बहार थी नग़मे ख़ुशी के थे।
अब उस मकाने-दिल में भी ख़ौफ़ो- हिरास* था।।
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सहरा नवर्दी* रेगिस्तान में घूमते रहना
बदहवास*अचेत हैरान परेशान
ग़ुबार*उड़ते हुए धूल के कण
फ़ुरक़त*वियोग जुदाई
क़ुरबत*क़रीब होना मिलन
इक़तेबास*इबारत का अंश अध्याय
मिज़ाजे-जब्र*अत्याचारी स्वभाव
वाइज़ो-नासेह*धार्मिक उपदेशक और नसीहत करने वाला
ग़म शनास*दुखों को समझने वाला
शराबे-तल्ख़ी ए दौराॅं*दुनिया में कड़वाहटों की शराब
शिर्क*जो कार्य धर्म के अनुरूप न हों
गुरेज़*परहेज़ अल्हेदगी
ख़ौफ़ो हिरास*डर भय

शकूर अनवर
9460851271

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