जिस पथ पर चला उस पथ पर मुझे दीपक तो जलाने दे साथी न समझ कोई बात नही मुझे साथ तो आने दे..अप्प दीपो भव

budhaa
photo courtesy dreamstime.com

सुनो सिद्धार्थ,

जब तुम खोज रहे थे
जीवन मे दुख का कारण
तब मैं जूझ रही थी
नन्हे राहुल के मासूम सवालों से
सवाल,जो उसके पिता के लिए थे
तुम मृत्यु से व्यथित
तुम बीमारी से व्यथित
तुम बुढ़ापे से व्यथित
कहाँ जान पाए तुम
कि व्यथा इन सबसे परे होती है
मृत्यु दुख नही है
मृत्यु मुक्त करती है
दुख जीवन होता है
वह जीवन जो साथी के पलायन के बाद
पीछे बचता है
बुढ़ापा सिर्फ प्रकृति की एक अवस्था है
अभिशप्त यौवन होता है
जो तुम्हारे बाद मेरे पास था.
शरीर के रोग का तो फिर भी इलाज है
पर मन का रोग जो तुम छोड़ गए मेरे पास
तुम्हारे दर्शन में उसका कोई जिक्र आया या नही
मेरे परोसे थाल को ठुकराकर
आखिर तुमने ग्रहण किया
सुजाता की खीर का पात्र
क्या तब भी नही गुन सके
कि भूख एक शास्वत सत्य है
तुम्हारे बौद्ध विहार में
आम्रपाली सी नगर वधू भी स्थान पा सकी
नही समा पाए तो बस पत्नी और पुत्र
इस दुःख का भी दर्शन खोज सके हो क्या

सुनो सिद्धार्थ,
दिग-दिगांतर तक विस्तृत हुआ
तुम्हारा दर्शन
तुम्हारा बौद्धिक व आध्यात्मिक साम्राज्य
पर मेरा विस्तार तो सिर्फ तुम थे..
सिद्धार्थ से बुद्ध होने की
तुम्हारी इस यात्रा में
मैं कहाँ हूँ..?
अज्ञात

नोटः कवि के बारे में पता नहीं है। यदि किसी पाठक को पता हो तो बताने का कष्ट करें। आभारी रहेंगे।

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