जीना भी दुशवार* है अपना। ये कैसा संसार है अपना।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

जीना भी दुशवार* है अपना।
ये कैसा संसार है अपना।।
*
थोड़ी सी ख़्वाबों की पूॅंजी।
छोटा सा व्यापार है अपना।।
*
जीवन ही उपवास में गुज़रा।
हर दिन मंगलवार है अपना।।

सबका दिन दहशत* में गुज़रा।
कहने को त्यौहार है अपना।।
*
कश्ती है मॅंझधार में “अनवर”।
दरिया में घर बार है अपना।।
*

दुशवार*कठिन
दहशत* डर ख़ौफ़

शकूर अनवर
9460851271

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