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बी.अनुराधा की जेल डायरी 
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“जुर्म क्या है?”: कहानियों के क़ब्रगाह से निकली कुछ अनमोल कहानियां..
जेल कहानियों का सबसे बड़ा कब्रगाह है। यहां अनंत कहानियां दफ़्न है। जेल से निकलते समय लोग अपनी कहानियों को वहीं दफ़्न कर देते हैं। उसके बाद खुद भी उसे याद नहीं करना चाहते। जेल समाज में एक ‘टैबू’ है।

लेकिन बी. अनुराधा जैसे क्रांतिकारी जब जेल जाते हैं तो इन्हीं दफ़्न कहानियों को बहुत मेहनत से निकालकर, उसमें अपनी संवेदना और गहन जीवनदृष्टि से जीवन फूंककर वापस हमारे लिए लेकर आते हैं। इन जिंदा कहानियों को जाने बिना इस समाज की कहानियों को जानना भी मुश्किल है।

बी.अनुराधा की जेल डायरी ‘जुर्म क्या है?’ में कुल 17 कहानियां है। इन कहानियों से गुजरना आसान नहीं है। आप ‘चांदनी’ जैसे जेल के उन बच्चों का सामना कैसे करेंगे जिन्होंने अभी तक चांद नहीं देखा। क्योंकि कैदियों को शाम के वक़्त ही बैरक में बंद कर दिया जाता है। नन्ही चांदनी से जब पूछा जाता है कि चांद कहां रहता है, तो वह अपने नन्हे हाथों से टीवी की ओर इशारा करती है। जैसे ये बच्चे जेल में अपनी मांओ के साथ कैद हैं, वैसे ही इन बच्चों का चंदा मामा टीवी में कैद है।

ये बच्चे महज एक ही जानवर बिल्ली से वाक़िफ हैं। अनुराधा परेशान होकर सवाल करती हैं कि ये बच्चे किस तरह के सपने देखते होंगे? इनके सपनों की चोरी का इल्जाम आखिर किस पर है?
आप उस सुनीता का सामना कैसे करेंगे जो जेल में ज्यादा स्वतंत्र महसूस करती है। मध्यवर्गीय राजपूत परिवार की पढ़ी लिखी लड़की सुनीता ने अपने पति को कह रखा है कि वो उसके लिए बेल तभी डाले जब वह रांची में उसके लिए एक कमरा ले ले। वह दुबारा ससुराल के दमघोंटू माहौल में नहीं जाना चाहती। जहां सांस लेना भी उसके ससुर की मर्ज़ी पर निर्भर है। इसी दमघोंटू माहौल के कारण उसकी देवरानी ने फांसी लगा ली थी और दहेज हत्या के फर्जी केस में सुनीता जेल आ गयी।

10 सालों से अपने पति के साथ जेल काट रही ‘लाठी बुढ़िया’ की कहानी बेचैन कर देने वाली है। उसकी बच्चेदानी बाहर की ओर निकली हुई है। उसे डायपर की तरह इसे लगातार बांधे रहना पड़ता है। अनुराधा को ‘लाठी बुढ़िया’ ने बताया कि जब उसका अंतिम बच्चा पैदा हुआ, उसी समय एक घरेलू झगड़े में उसके पति ने उसके पेट पर जोर की लात मारी और बच्चेदानी बाहर निकल गयी। लेकिन उसके बाद लाठी बुढ़िया ने इसे वापस अंदर करने के लिए जानबूझकर सर्जरी नहीं कराई। यह उसका प्रतिरोध था कि अब उसका पति उसके साथ सेक्स नहीं कर पायेगा। अनुराधा सवाल करती हैं कि यह उसकी बेवकूफी है या उसका प्रतिरोध।

लाठी बुढ़िया के पति की जब जेल में हार्ट अटैक से मौत हो जाती है तो वह जेलर की आंखों में आंख डालकर कहती है कि तुम्हारी जेल के अंदर मेरे पति की मौत हुई है। तुम इसके जिम्मेदार हो और तुम्हे भी जेल होनी चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे मेरी बहू की मौत मेरे घर पर हुई, और सिर्फ इसलिए तुम लोगो ने हमे जेल भेज दिया। यह एक तरह से ‘क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ पर उस बुढ़िया का एक जोरदार तमाचा है।
अनुराधा का कहानी कहने का ढंग बहुत रोचक है। वो चरित्र को परत दर परत पाठकों के सामने ठीक उसी तरह रखती हैं जैसे एक के बाद एक प्याज की परत उतारी जाती है।

‘शिल्पा’ के बारे में हमे बाद में पता चलता है कि वह आदिवासी है। जीवन की गरीबी से तंग आकर वह दिल्ली भाग जाती है। शिल्पा ने नौकरी के लिए अपनी आदिवासी पहचान छुपाई। उसकी दोस्ती राहुल से हुई। दोनों ने मंदिर में शादी की। राहुल, शिल्पा ने झारखंड से एक और गरीब परिचित आदिवासी लड़की को वहां से निकला। उसके बाप ने शिल्पा-राहुल पर किडनैपिंग का झूठा आरोप लगा दिया। जेल आने के बाद शिल्पा को पता चला कि उसका पति राहुल हिन्दू नहीं मुस्लिम है। शिल्पा की तरह ही उसने भी नौकरी के लिए मजबूरी में अपनी पहचान बदली। जेल में आने के बाद उसे यह भी पता चला कि वह गर्भवती है। शिल्पा के ससुराल वाले अब उसे मुस्लिम बनाने पर तुले है। शिल्पा की असली पहचान क्या है। जंगलों में प्रकृति के साथ मुक्त विचरण करने वाली शिल्पा की बच्ची ‘रोशनी’ अब इस अंधेरी काल कोठरी में जन्म लेने वाली है। इस ‘रोशनी’ की पहचान क्या होगी? इन तमाम पहचानों के बीच कत्ल तो इंसानियत का हो रहा है। इसका कातिल कौन है?

‘मुन्नी बदनाम हुई’ कहानी शिद्दत से मंटो की याद दिला देती है। जहां ‘चरित्रहीन’ महिलाएं ज्यादा नैतिक और मानवीय हैं और ‘चरित्रवान’ पुरुष ज्यादा अनैतिक और अमानवीय।

बी.अनुराधा जिस जेल में बंद थी वहीं पर ‘मेरी टायलर’ भी 1970-75 बंद रही हैं। यह तथ्य जब उन्हें एक पुरानी वार्डेन से पता चली तो बी.अनुराधा खुशी से पागल हो गयी। अनुराधा ने ‘भारतीय जेलों में पांच साल’ फिर से पढ़ी और देखा कि तबसे अब तक क्या बदला है। अनुराधा बहुत रोचक तरीके से लिखती है-‘मेरी टायलर ने लिखा है कि मक्खियां सुबह की शिफ्ट में काम करती हैं और मच्छर रात की शिफ़्ट में। लेकिन अब दोनों मिलकर दोनों शिफ्ट में काम कर रहे हैं।’

अनुराधा ने मेरी टायलर को उद्धरित करते हुए लिखा है कि जब मेरी ने जेल प्रशासन से अंदर पहने जाने वाले कपड़ों की मांग की तो जेल प्रशासन ने इसके लिए गृह मंत्रालय को चिट्ठी लिख दी। यह राज्य का पागलपन है या जनता के प्रति एक ‘सैडिस्ट’ दृष्टिकोण?

बी.अनुराधा ने इस रोचक तथ्य का खुलासा किया है कि मेरी टायलर उस वक़्त झारखंड शीला मरांडी से मिलने ही आयी थी। यह वही शीला मरांडी है जिन्हें पिछले साल प्रशांत बोस के साथ रांची में गिरफ्तार किया गया था। मेरी टायलर-शीला मरांडी-बी.अनुराधा….. एक निरंतरता है। संघर्ष की निरंतरता, उम्मीद की निरंतरता।

अनुराधा ने कई जगह चार्ली चैप्लिन का जिक्र किया है। चार्ली चैप्लिन का एक मशहूर कथन है कि जिंदगी ‘लांग शाट’ में कॉमेडी है, लेकिन ‘क्लोज अप’ में ट्रेजेडी। अनुराधा भी अपनी कहानियों को ‘लांग शॉट’ से धीरे धीरे ‘जूम इन’ करती हैं। कॉमेडी ट्रेजेडी में बदलने लगती है। आंखों में आँसू आने लगते हैं। फिर आँसू गुस्से और बेचैनी में बदलने लगते हैं। और हम सोचने पर विवश हो जाते हैं कि वह क्या चीज है जो हमे इंसान बनने से रोक रही है।

17 कहानियों में बी.अनुराधा एक सूत्रधार की भूमिका में हैं। किताब के अंतिम चैप्टर में इस सूत्रधार ने अपनी कहानी लिखी है। एक दलित परिवार में जन्मी बी.अनुराधा कैसे क्रांतिकारी राजनीति की तरफ आयी और कहां से उन्हें वह दृष्टि मिली जिसके कारण ही वे इन कहानियों तक पहुँच सकी।

इन कहानियों से गुज़रते हुए मुझे लगातार वह बिम्ब याद आता रहा कि कैसे महिलाओं ने पीढ़ी दर पीढ़ी आग को बचाया है और उसे अपनी अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया है।

बी.अनुराधा की इन कहानियों में भी उसी जीवन-मूल्य की आग है जिसके कारण आज न सिर्फ इंसानियत बची है बल्कि बेहतर कल की लड़ाई भी संभव है।

मूल तेलगु में लिखी इस किताब का शानदार हिन्दी अनुवाद ‘आर. रत्ना माधवी’ ने किया है और इसे ‘Change Publications’ हैदराबाद ने छापा है।
मूल्य है- 250 रुपये।

मनीष आजाद
० Manish Azad

(लोक माध्यम से साभार)

 

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