
ग़ज़ल
शकूर अनवर
नज़र के सामने धुॅंधला के मिट गई आख़िर।
तेरी वफ़ा की वो तसवीर क्या हुई आख़िर।।
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किसी रक़ीब* की साज़िश* भी देखली आख़िर।।
हम और आप हुए फिर से अजनबी आख़िर।।
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तुम्हारे हुस्न के दरिया में भी डूब जाने दो।
मचल उठी है मेरे दिल की तिशनगी* आख़िर।।
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तेरे बग़ैर कोई फ़िक्रे-शेर भी न रहा।
तख़य्युलात* ने करली है ख़ुदकुशी* आख़िर।।
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तमाम उम्र तुझे ढूॅंढता रहा ‘अनवर”।
ये किस सराब* में गुज़री है ज़िंदगी आख़िर।।
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रक़ीब*दुश्मन प्रेमिका का दूसरा प्रेमी
साज़िश* षडयंत्र
तिशनगी* प्यास तृष्णा
फ़िक्रे शेर*कविता का चिंतन
तख़य्युलात* विचारों
ख़ुदकशी*आत्महत्या
सराब*मरीचिका
शकूर अनवर
9460851271