नफ़रतें लाख दिल में घर करलें। इक मुहब्बत बड़ी है बाबूजी।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

चोट दिल पर पड़ी है बाबूजी।
आसुओं की झड़ी है बाबूजी।।
*
कैसी मुश्किल घड़ी है बाबूजी।
सबको अपनी पड़ी है बाबूजी।।
*
नफ़रतें लाख दिल में घर करलें।
इक मुहब्बत बड़ी है बाबूजी।।
*
चैन मिलता नहीं किसी सूरत।
ऑंख जबसे लड़ी है बाबूजी।।
*
उॅंगलियों से कुरेदते क्या हो।
ऐसी क्या शय* गड़ी है बाबूजी।।
*
इक सहारा है जिससे चलता हूँ।
आपकी ही छड़ी है बाबूजी।।
*
ढेर बारूद का है इक “अनवर”।
जिस पे दुनिया खड़ी है बाबूजी।।
*

शय*वस्तु

शकूर अनवर
946085127

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