-प्रकाश केवडे-

पत्थरों की बस्ती
से गुजरते एक
पत्थर पर बैठकर
पत्थरों से पूछा
चार पत्थरों ने कहा
इंसान ने हमें समझा क्या
जब उठाया फेंका
किसी का सर
किसी कांच को तोडा
कुछ बिरले होते हैं
हमारी कीमत जानते हैं
कभी हमें मील का पत्थर
तो कभी शिलालेख
बना संभालते हैं
हम में से कोई
किस्मत वाला मूरत
बनता है और
पत्थर दिल इंसान
से उम्र भर पूजा
जाता है।
फिर भी मुस्कुराते
खुशहाल रहते हैं
क्योंकि हमसे बने
मकानों में इंसान
रहते हैं।
रचियता प्रकाश केवडे
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