
-चाँद ‘शैरी’-

मेरा वो आश्ना था बहुत
मुझ से लेकिन ख़फ़ा था बहुत
ज़र्द पत्ते हरे हो गए
बादलों में नशा था बहुत
मेरी नींदें चुरा ले गया
देखने में भला था बहुत
फड़फड़ाता है अब क़ैद में
जो परिन्दा उड़ा था बहुत
तिनका तिनका नशेमन हुआ
आँधियों से लड़ा था बहुत
ख़ूने – दिल से जो उन्वाँ लिखा
सुर्ख़ियों में छपा था बहुत
दिल के काग़ज़ पे ‘शेरी’ तेरे
हाशिया रह गया था बहुत
चाँद ‘शैरी’ (कोटा)
098290-98530
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