बचा बचा के नज़र मुझ को देखने वाले। मेरी वफ़ा मेरी उल्फ़त हवस* से बाहर है।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

शकूर अनवर

कहाॅं से ढूॅंढ के लाऊॅं मैं बस से बाहर है।
सुकूने-दिल* यहाँ तारे-नफ़स* से बाहर है।।
*
बचा बचा के नज़र मुझ को देखने वाले।
मेरी वफ़ा मेरी उल्फ़त हवस* से बाहर है।।
*
जहाँ सुनो मेरी आवाज़ तुम वहीं रुकना।
मेरी सदा* तो सदा ए जरस* से बाहर है।।
*
किसी भी तौर से उसको भुला नहीं सकता।
मैं क्या करूँ ये मेरी दस्तरस* से बाहर है।।
*
जवाॅं हो अज़्म* तो तूफ़ान क्या बिगाड़ेगा।
हर उड़ने वाला परिंदा क़फ़स* से बाहर है।।
*
जियें तो कैसे जियें हम सुकून से “अनवर”।
यहाॅं तो चैन से मरना भी बस से बाहर है।।
*

सुकूने-दिल*दिल का चैन
तारे-नफ़स*साॅंस की डोरी
हवस*वासना
सदा*आवाज़
सदा ए जरस*क़ाफ़िला चलने के लिए बजने वाली घंटी की आवाज़
दस्तरस*पहुॅंच
अज़्म*हौसला
क़फ़स*पिंजरा

शकूर अनवर
9460851271

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments