बस जाते हैं आ आके कई ग़म के परिंदे। वीरान सही दिल मेरा ख़ाली तो नहीं है।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

जो मुझ पे नज़र थी वो हटाली तो नहीं है।
या कोई ख़लिश* दिल की निकाली तो नहीं है।।
*
बस जाते हैं आ आके कई ग़म के परिंदे।
वीरान सही दिल मेरा ख़ाली तो नहीं है।।
*
उठने को जो तूफ़ाॅं है उसे देख रहा हूँ।
कश्ती अभी दरिया से निकाली तो नहीं है।।
*
हाँ कुछ तो चमकते हैं तेरी याद के जुगनू।
काली तो है शब* इतनी भी काली तो नहीं है।।
*
या मेरी निगाहों के तक़ाज़े* को समझ ले।
या अपनी नज़र देख सवाली तो नहीं है।।
*
ग़ज़लों में जो उभरी है वो सूरत नहीं मिलती।
तस्वीर तेरे दिल में ख़याली* तो नहीं है।।
*
गुलशन* का हर इक फूल परीशान है “अनवर”।
गुलचीं* कहीं ख़ुद बाग़ का माली तो नहीं है।।
*

ख़लिश*रंजिश जलन
शब*रात्रि रात
तक़ाज़े*ख्वाइशें इच्छाऍं
ख़याली*काल्पनिक
गुलशन*उपवन
गुलचीं*फूल तोड़ने वाला

शकूर अनवर
9460851271

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