
ग़ज़ल
शकूर अनवर
एक दरिया हूँ बहता हुआ।
एक झरना हूंँ गाता हुआ।
मंज़िलों से रहा बे ख़बर।
अपनी धुन में ही चलता हुआ।।
*
अब ये देखे तो देखे कोई।
वादी ए ग़म* सुलगती हुई।
ऑंख में ऑंसुओं की लड़ी।
दिल में तूफ़ान ठहरा हुआ।।
*
हर जगह भूखो-इफ़लास*की।
सर पे तलवार लटकी हुई।
हर कहीं दार* सजती हुई।
हर कोई ज़ुल्म सहता हुआ।
*
हम तो क़िस्मत से भागे हुए।
ज़िंदगी में अभागे हुए।
हर कहीं ज़ुल्म जागे हुए।
क्यूँ ज़माना है सोया हुआ।।
*
कब मिली है मुझे रोशनी।
कब मयस्सर* हुई चाॅंदनी।
कश्मकश में रही ज़िंदगी।
इक सितारा हूंँ टूटा हुआ।।
अब नहीं है कहीं भी अमाॅं*।
खो गईं अम्न की बस्तियाँ।।
कौन “अनवर” सुने अब यहाँ।
आसमाॅं भी तो बहरा हुआ।।
*
वादी ए ग़म* दुखोंकी घाटी
भूखो-इफ़्लास*भूख और गरीबी
दार*सूली
मयस्सर*प्राप्त होना
अमाॅं*अमन शांति
शकूर अनवर
9460851271