मेरी ऑंखों में रखदी तुमने दुनिया। मेरी ऑंखों को सपना चाहिये था।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

मुहब्बत में भरोसा चाहिये था।
मुझे कुछ और झुकना चाहिये था।।
*
उमीदों का सवेरा चाहिये था।।
नया सूरज निकलना चाहिये था।।
*
मेरी ऑंखों में रखदी तुमने दुनिया।
मेरी ऑंखों को सपना चाहिये था।।
*
उधर इक जादा ए दारो-रसन* है।
उसी रस्ते पे चलना चाहिये था।।
*
तुम्हारी मंज़िलें ख़ुद पाॅंव छूतीं।।
सफ़र में बस इरादा चाहिये था।
*
अगर सर भी चला जाता तो जाता।
हमें हुर्मत* बचाना चाहिये था।।
*
लो हमने जान दे दी उस गली में।
मुहब्बत को तमाशा चाहिये था।।
*
वो मेरे हौसले से हार बैठी।
हवा को रुख़ बदलना चाहिये था।।
*
यही थी इश्क़ की मेराज* “अनवर”।
हमें जाॅं से गुज़रना चाहिये था।।
*

जादा ए दारो रसन*सूली की तरफ़ जाने वाला छोटा रास्ता पगडंडी
हुर्मत*इज़्ज़त आबरू
मेराज*पराकाष्ठा

शकूर अनवर
9460851271

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