मैं कहाँ रास्ते में तन्हा हूंँ। साथ रहते हैं रातभर तारे।।

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

बन के चलते हैं हमसफ़र तारे।
मंज़िलों से हैं बाख़बर* तारे।।
*
मैं कहाँ रास्ते में तन्हा हूंँ।
साथ रहते हैं रातभर तारे।।
*
यह तो ऐजाज़* है मुहब्बत का।
दिन में आने लगे नज़र तारे।।
*
चाॅंद डरता है देखकर तुमको।
तुमसे छुपते हैं देखकर तारे।।
*
जब भी आमद* हुई है सूरज की।
रह गये सिर्फ़ डूबकर तारे।।
*
रातभर इनकी धूम रहती है।
दिन में रहते हैं दर-बदर तारे।।
*
क्यूँ गिरी मेरे घर पे ये बिजली।
क्यूँ गिरे मुझपे टूटकर तारे।।
*
चाॅंद सूरज तो दूर हैं “अनवर”।
इनसे भी दूर हैं मगर तारे।।
*

बाख़बर*ख़बर रखने वाले
ऐजाज़*चमत्कार,
आमद*आगमन आना

शकूर अनवर
9460851271

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