shakoor anwar books

ग़ज़ल
शकूर अनवर

शकूर अनवर

बहते बहते न ये पानी यहाॅं ठहरा होता।
चलता रहता तो समंदर कोई गहरा होता।।
*
मैने दरवाज़ा ए दिल कब का खुला छोड़ा है।
कोई तो आ के मुसाफ़िर यहाॅं ठहरा होता।।
*
काश दुनिया मुझे ये दार ओ रसन* ही देती।
मैं भी तारीख़* का इक बाब* सुनेहरा होता।।
*
पेट की आग ने झुलसा दिया इसको वर्ना।
मेरी तशहीर* का बाइस* मेरा चेहरा होता।।
*
सुन के अपनों की मुहब्बत का फ़साना “अनवर”।
बस यही सोच रहा हूॅं कि मैं बहरा होता।।
*
शकूर अनवर
दार ओ रसन* सूली फंदा
तारीख़* इतिहास
बाब* अध्याय
तशहीर* प्रचार प्रसार
बाइस* कारण
9460851271

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