ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
सख़्तियाँ झेल कर ही मौसम की।
सुबह-दम* ऑंख तर है शबनम की।।
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रूह के तार झनझना उट्ठे।
किसने छेड़ी है बात सरगम की।।
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आ रही है कहाँ से कानों में।
काॅंपती सी सदाएँ मातम* की।।
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अब रहे जान या चली जाये।
शान रखनी पड़ेगी परचम* की।।
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ज़ख्म तो खुद ज़माना भर देगा।
आपको क्यूँ पड़ी है मरहम की।।
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धूल जमने लगी सलीबों* पर।
राह सूनी है इब्ने-मरियम* की।।
वो उजाले कहाँ गये “अनवर”।
क्यूँ ॲंधेरी है रात पूनम की।।
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सुबह दम*प्रात काल
मातम*शोक दुख
परचम*झंडा ध्वज
सलीब*वो क्रास जिस पर ईसा मसीह को लटकाया गया
इब्ने मरियम*मरियम का बेटा ईसा मसीह
शकूर अनवर
9460851271