
तुम्हारी हंसी
-रामस्वरूप दीक्षित-

तुम हंसने वाली बात पर तो हंसती ही हो
तब भी हंसती हो
जब हंसने की
नहीं होती कोई वाजिब वजह
बल्कि बहुत बार तो
ये भी हुआ
कि तुम
उन बातों पर भी हंसी
खूब ठठाकर
जिन बातों पर
मुझे आ रहा था रोना
और तुमने करके
मेरे रोने को दरकिनार
चुना हंसना
तुम उस समय भी
हंस पड़ती हो खिलखिलाकर
जब उदासी के बादल
मंडरा रहे होते हैं
हमारे आसपास
और होते हैं
लगभग बरसने को
तुमने न जाने
कितनी कितनी मुसीबतों के वटवृक्षों
कितनी कितनी परेशानियों के पहाड़ों
और
कितने कितने दुखों के घरोंदों को
उड़ा दिया
अपनी हंसी की आंधी से
एक स्त्री
अपनी हंसी की छैनी से
काट देती है बेचैनी की चट्टान
और उकेर देती है उसमें
मुसकराती हुई मूर्ति
स्त्री की हंसी
वह जगह है
जहां बिना खाद पानी के भी
पनपते रहते हैं
फूलों वाले पौधे
बिना पानी भी
बहने लगती है नदी
और रेगिस्तान हो उठता हराभरा
एक स्त्री के
वेबजह हंसते ही
रामस्वरूप दीक्षित