लिखा था जो मेरी क़िस्मत में वो हुआ है मेरा। तुम इसकी फ़िक्र न करना जो घर जला है मेरा।।

shakoor anwar 01
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

लिखा था जो मेरी क़िस्मत में वो हुआ है मेरा।
तुम इसकी फ़िक्र न करना जो घर जला है मेरा।।
*
शिकस्ता* नाव को लेकर कहाॅं- कहाॅं भटकूॅं।
ख़ुदा का नाम ही तूफ़ाॅं में नाख़ुदा* है मेरा।।

जो कर सका न तू अब तक वो ज़ुल्म भी करले।
जवाब तेरी जफ़ाओ का बरमला* है मेरा।।
*
मैं बुतकदों* से बहुत बच बचा के आया हूँ।
न जाने क्यूँ तेरे दर पर ये सर झुका है मेरा।।
*
मिलेगा दशत*के आख़िर में एक सूखा शजर।
मिलूॅंगा मैं भी वहीं पर यही पता है मेरा।।
*
सलीबो दार* से ख़ाइफ़ नहीं हूॅं मैं “अनवर”।
सलीबो दार का सदियों* से सिलसिला है मेरा।।
*

शिकस्ता*जर्जर टूटी हुई
नाखुदा*मल्लाह
बरमला* सटीक
बुतकदों*जहां मूर्तियां रखी जाती हैं
दशत*जंगल वीराना
सलीबो*यानी सूली, फंदा
ख़ाइफ़* भयभीत, डर,
सदियों*शताब्दियों

शकूर अनवर
9460851271

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