
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
लिखा था जो मेरी क़िस्मत में वो हुआ है मेरा।
तुम इसकी फ़िक्र न करना जो घर जला है मेरा।।
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शिकस्ता* नाव को लेकर कहाॅं- कहाॅं भटकूॅं।
ख़ुदा का नाम ही तूफ़ाॅं में नाख़ुदा* है मेरा।।
जो कर सका न तू अब तक वो ज़ुल्म भी करले।
जवाब तेरी जफ़ाओ का बरमला* है मेरा।।
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मैं बुतकदों* से बहुत बच बचा के आया हूँ।
न जाने क्यूँ तेरे दर पर ये सर झुका है मेरा।।
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मिलेगा दशत*के आख़िर में एक सूखा शजर।
मिलूॅंगा मैं भी वहीं पर यही पता है मेरा।।
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सलीबो दार* से ख़ाइफ़ नहीं हूॅं मैं “अनवर”।
सलीबो दार का सदियों* से सिलसिला है मेरा।।
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शिकस्ता*जर्जर टूटी हुई
नाखुदा*मल्लाह
बरमला* सटीक
बुतकदों*जहां मूर्तियां रखी जाती हैं
दशत*जंगल वीराना
सलीबो*यानी सूली, फंदा
ख़ाइफ़* भयभीत, डर,
सदियों*शताब्दियों
शकूर अनवर
9460851271