
– विवेक कुमार मिश्र-

चल पड़े मथुरा की ओर
उसी वृंदावन मथुरा की गलियों में
जिसे पढ़ते जीते शब्द – शब्द को
सूरदास के रस रंग
और अनुभूति में
महसूस करते रहे
यहां के कण कण में
प्रभु की लीला का विस्तार
गाते महाकवि सूरदास हैं
सूरदास के शब्द को
हर धड़कन में हर स्पंदन में महसूस कर सकते हैं
यह मथुरा कृष्ण की है राधा की है
सूर की है, जीवन के उत्सव गान की है
मथुरा में वृंदावन में आते ही डूब जाते हैं
लीला भूमि में राग भूमि में
और जीवन के उत्सव गान की भूमि में
जहां से रचा गया सामूहिक राग का संसार
उस मथुरा में जो कृष्ण की गली है
जहां कृष्ण , बचपन की लीला किए
उस मथुरा में गली गली घूमना
सिर्फ घूमना भर नहीं है
हर गली में हर आंगन में
कृष्ण को महसूस करते चलना है
युगों युगों से महसूस करते आ रहे हैं
यहां यमुना नदी भर नहीं है
वह कालिंदी है जहां कृष्ण ने
लीला का विस्तार किया
मथुरा और वृंदावन के कण कण में
बस एक ही ध्वनि प्रभु श्रीकृष्ण की गूंज रही है
आप मथुरा आये वृंदावन आये
इसके कण कण में
प्रभु के वास को महसूस करते चलें
यहां राधे कृष्णा का जाप
करते करते जीवन का उत्सव
जी लेते हैं , श्रीकृष्ण की ध्वनि के साथ
गूंजता ही रहता है जीवन राग
हर अभाव में पूर्णता का भाव लिए
यह भूमि गूंजती है
मन में , आत्मविस्तार में
और संसार की एक एक ध्वनि को लिए हुए
यह भूमि जीवन का पाठ पढ़ाती चलती है
कहीं से हों कैसे भी हों
और किसी भी तरह से आये हों
यदि यहां आ गये तो जीवन के रंग में
सभ्यता और संस्कृति को महसूस करते
संस्कृति के उत्सव को जीते चलें।
– विवेक कुमार मिश्र
कवि – आलोचक
लेखक हिंदी के प्रोफेसर हैं