हमदिया* ग़ज़ल
-शकूर अनवर-
है नाम नामों में आला* उसका।
मुक़ाम बरतर से बाला* उसका।।
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उसी के जंगल उसी का सहरा।
उसी के परबत हिमाला उसका।।
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उसी ने शम्स ओ क़मर* बनाये।
सितारे उसके उजाला उसका।।
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वो कश्तियों को किनारे लाया।
समंदरों में हवाला* उसका।।
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अमान* उसकी सदा रहेगी।
रहेगा सर पर दुशाला उसका।।
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जिसे भी देखा ग़ज़ब* से उसने।
निकल गया है दिवाला उसका।।
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उसी ने हमको हुरुफ़* बख़्शे ।
किताब उसकी रिसाला* उसका।।
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हमारे जिस्मों में जान उसकी।
हमारे मुॅंह में निवाला उसका।।
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उसी ने इंसाॅं को अक़्ल बख़्शी।
यही हुनर है निराला उसका।।
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वही है दैर ओ हरम* का मालिक।
उसी की मस्जिद शिवाला उसका।।
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ये रंगो बू*सब उसी के “अनवर”।
सफ़ेद उसका है काला उसका।।
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हमदिया*ईश्वर की तारीफ़ में लिखी गई शायरी को हमदिया शायरी कहते हैं
आला* सब से बड़ा सर्वोच्च
बाला* बुलंद सब से ऊंचा
शम्स ओ क़मर*सूरज और चाॅंद
हवाला*संदर्भ
अमान*शांति
ग़ज़ब* क्रोध
हूरूफ*अक्षर
रिसाला* किताब पत्रिका
दैर ओ हरम* काशी काबा
रंगो बू* रंग और ख़ुशबू
शकूर अनवर
9460851271