
-सुनीता करोथवाल-

सुना है आज गोरैया दिवस है
पुराने दिन याद आ रहे हैं
शब्द रोने को हैं बस
चल तेरी याद खोल लेती हूँ आज
बचपन की गठरी से….
कोई एक दिन तय नहीं मेरी दोस्त तुम्हारे लिए
तुम तो माँ सी हो
जिसने सुबह जागना सिखाया
तुम्हारी चहक और माँ की चूडियाँ
सदा साथ साथ बजी
चार बजे की चक्की
जीवन की भूख का समाधान था,
तुम्हारा कच्ची छत्त की कड़ियों में चूं चूं
मेरी किताब के पलटते पन्ने
बचपन का साथ है अपना….
भूली नहीं हूँ
घर का अनाज और तेरी पहरेदारी
आँगन में सूखते बाजरे के सिरटे
और तेरा सगे संबंधियों संग सेंध लगाना
बिल्कुल वैसे जैसे हम चुराते थे बेर
किसी बाग से
पक्की चोरनी थी तूं मेरी तरहा
कभी छत्त पर सूखते तिल चुराती
कभी धान का पुआल
नन्ही सी तुम
पर पेट था या कुआं
कभी भरता न था…
सारी कड़ियां खाली कर देती हर साल
घोंसले के चक्कर में इन दिनों
ऊन के धागे चतुराई से खींचती
कभी घास की झाडू सिर हिला हिला तोड़ती
ले जाती कुंडे ढोने वाली औरत की तरह एक एक कर
और बुन लेती बच्चों की खातिर घर…
कभी कभी वो तुम्हारा
लड़ना झगड़ना
जाने किस बँटवारे पर कहा सुनी होती होगी
आदमी सा तुम में भी बैर विरोध होता होगा शायद
फिर अगले ही पल बैठे मिलते तार पर
बच्चों की तरहा बिल्कुल…
वो तुम्हारे नन्हे मेहमान
नन्ही पीली चोंच पर भूख से बिलखता जीवन
अपना पेट भूलकर तुम छुपकर लाती कीड़े ,अनाज
और चोंच से भर देती उसकी भूख का मुँह
फिर पोंछती जूठा मुँह उसका चोंच से ही
जैसे पोंछती हूँ चुनरी से बेटी का मुँह
अब समझी हूँ तुम्हारा व्यस्त होना
माँ बनकर…
सुनो चिड़िया
सुनो मेरी दोस्त
अब मैं गाँव छोड़ चुकी हूँ
छोड़ चुकी हूँ कच्ची छत्त
हरे पेड़
मेरे खुद के बच्चे हैं अब
नहीं रख पाती अब मुंडेर पर दाना पानी
अपनी दिनचर्या में तुम्हें शामिल नहीं कर पायी
नहीं बाँध पाती घोंसले किसी टहनी से
पर तुम मत छोड़ना मेरा गाँव
अपना ख्याल खुद रख लेना मेरी दोस्त
तुम मुझे अब भी प्यारी हो
अपनी सहेली तमन्ना जैसी…..
तुम्हारी सखी
सुनीता करोथवाल …