हम कहाॅं तक उड़ें

नज़्म

-शकूर अनवर-

*
हम कहाॅं तक उड़ें
हम कहाॅं तक उड़ें
पार कर तो लिया हमने सहरा* मगर
सामने पर्बतों की है लंबी डगर
पुरख़तर* वादियों में है अपना सफ़र
हम कहां तक उड़ें
हम कहां तक उड़ें
ये भी सोचें ज़रा
हम भटकते परिंदों पे रखते सदा
बाज़ अपनी नज़र
और फिर
बेसबब उड़ते रहने में दानिश* नहीं
मंज़िलों तक पहुॅंचने की कोशिश नहीं
मैं अगर सच कहूॅं
कोई ख़्वाहिश नहीं
लो घटाओं ने काला किया आसमाॅं
बादलों के इशारे सुनो
इससे आगे भी शायद समंदर मिले
हम कहाॅं तक उड़ें
ऐ मेरे हमसफ़र
अब तो ऐसा करें
हम यहीं पर कहीं आशियाना*
बनाकर ही रहने लगें
हम कहां तक उड़ें
हम कहां तक उड़ें
*

सहरा* रेगिस्तान
पुरख़तर*कठिन
दानिश*अक़्ल, समझदारी
आशियाना” घर घोंसला
*
शकूर अनवर
मोब 9460851271

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