
-महेन्द्र नेह-
(कवि, गीतकार और समालोचक)
साधो, हम माटी के बेटे ।
जियें मरें माटी की खातिर, फिर भी घर में हेटे।।
माटी का तन, माटी का मन, माटी ही आहार।
माटी ओढ़ि, बिछावन माटी, माटी ही श्रृंगार ।।
माटी से सोना उपजावें करें चमन गुलजार।
फिर भी माथे से कर्जे का उतरे नहीं बुखार ।।
अपनी माटी से करते हम अब भी इतना प्यार ।
हर मौसम की व्यथा झेलकर रखते इसे सँवार ।।
जो करते माटी को घायल निजी स्वार्थ के पेटे ।
कैसा है दुर्भाग्य कहाते, भारत माँ के बेटे ।।
(महेन्द्र नेह की ‘हमें साँच ने मारा’ पद-संग्रह पुस्तक से साभार)
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