
– विवेक कुमार मिश्र-

हे कृष्ण !
कण कण में रमे
मन के आराध्य
जीवन के राग रस व रंग के उत्सव
सृष्टि के आदि से अंत तक
बस तुम्हीं हो कृष्ण
तुम्हीं से सीखा
जीवन का धर्म
पथ और अपथ के बीच
पथ की पहचान
कृष्ण ने ही हाथ थाम
संसार का रंग दिखाया
जो कुछ समझ सका
सब तुम्हीं से संभव हुआ
तुम्हीं में सृष्टि का सूत्र देखा
हे कृष्ण! तुम्हीं में लय देखा
अंतर के कृष्ण
बाहर के कृष्ण
एक दूसरे में लय हैं
जो नहीं जान सका,
नहीं पहचान सका
जो कुछ नहीं समझ सका ,
वह सब, हे कृष्ण !
एक लय में बस तुम हो।
हे कृष्ण ! सब कुछ तुम्हीं में लय है।
– विवेक कुमार मिश्र