-डॉ अनिता वर्मा-

नेह का रंग जब भिगोता है
अंतर्मन रंग जाता पोर पोर
स्पर्श पा नेह रंग का
चेतन अवचेतन में सिमटी
समस्त संवेदनाएं विस्तार पा जाती
खिल उठता अंग प्रत्यंग
स्मृतियां घुलने लगती है
धमनियों में रक्त प्रवाह सी
जो छूट सा गया है कही …कुछ !!!!
जीवंत हो दौड़ने लगता
भीतर ही भीतर द्रुत गति से
नेह रंग जब पहुँच जाता
मन की दुनियां में
अनचीन्हे सपनों के बिम्ब
तैर जाते कुछ क्षण के लिए
ताजा हवा का झोंका
प्रफुल्लित कर जाता
मन का कोना कोना
नेह का रंग जादुई सुरमे सा
जिसमें दिखाई देते
इंद्रधनुषी रंग बना देते
जीवन को सतरंगी
नेह के रंग से खिल उठती
आशा की कलियां
पुष्पित और पल्लवित
भर देती जीवन को
उत्साह से …….!!!
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डॉ अनिता वर्मा
कोटा राजस्थान