hindi book

-डॉ हेमा पाण्डेय-

डॉ हेमा पाण्डेय

(लेखिका पूर्व प्राध्यापिका एवं मोटिवेशनल स्पीकर हैं)

सोचना होगा उन
खिड़कियों के बारे में
जिनसे हम एक मुद्दत से
गुफ्तगू करना भूल गए।
बिखरी चीजों को
जिन्होंने हाथों के
स्पर्श को नहीं चखा,
भूल गए है घर और
मकानों के बीच का फर्क।
जिंदगी से खोजना होगा वह अर्थ
जो मनुष्य होने की प्रेरणा देता है।
संवेदनाओं को देता है ऐसा विस्तार
जिससे जीत ली जाती है
बड़ी से बड़ी जंग ।
हमें चुराने होगें वे लम्हें,
संजोने होंगे वे एहसास।
जो कदम कदम पर
जिंदगी के साथ होने की
आहट को उमंगों की तरह पिरो दें।
रोजमर्रा की सख्त सड़क पर
हमें ढूंढ लेना होगा वो कोना
जो रचा लेता है।
चाय की प्यालियों का साथ
दीवारों में बनानी होंगी
वे अलमारियां जो फैज
और गालिब की मौजूदगी से
कोने-कोने को भींच दें।
नज्मों की रूह में,
रंगों और ब्रश की छुअन से
उकेरने होंगे ऐसे चेहरे,
जो याद दिलाते रहें
शांति और एकता की तस्वीर को।
दरवाजे को देनी होगी वो थाप,
जो आत्मसात कर ले
हर एक टकटकी को।
सुबह के मिलने पर….
उगाने होंगे वे पौधे,
जिनकी टहनियों से
छनती सूरज की रोशनी
बदल दे दोपहरी के ताप।
थोड़ी देर थमकर अब
सोचना ही होगा ।
यकीन मानों माफ
कर देगीं वे दीवारे।
जो कब से देख रही है
तुम्हें खुद से दूर जाता हुआ।
कुछ थमना तो होगा ही
देखना होगा इस आगे
आने का मतलब।
इस भागदौड़ को
घर को बचाये रखना होगा
बस मकान होने से।
मंजर भोपाली का एक शेर है…..
“जमीनें तंग होती जा रही है नस्ल ए इंसा,
मकान मिलते हैं शहरों में अब आँगन नही मिलता।”

Advertisement
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments