आदमी ही की नज़र में खल रहा है आदमी

chand sheri
चाँद ‘शैरी’

चाँद ‘शैरी’

आग में हैवानियत की जल रहा है आदमी
ज़ुल्म ढा कर भी यहाँ तो फल रहा है आदमी

इन हवस की मण्डियों में देखिये चारों तरफ़
लड़खड़ाता क्या नशे में चल रहा है आदमी

बेबसी भी भूख की देखो तो ऐ अहले- जहाँ
पेट की बस आग में नित जल रहा है आदमी

फूलते-फलते किसी को देख ही सकता नहीं
आदमी ही की नज़र में खल रहा है आदमी

देख कर दुनिया की हालत चुप है ‘शेरी’ क्या करें
जिस तरफ़ देखो किसी को छल रहा है आदमी

चाँद ‘शैरी’ (कोटा)

098290-98530

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Rafique Ahmed Nagori ujjain
Rafique Ahmed Nagori ujjain
2 years ago

बहुत बढ़िया ग़ज़ल है चांद शेरी साहब की ।