और कुछ देर ठहर ऐ दिले बेताब ठहर। चाॅंद जो छुप गया बदली में निकलता होगा।।

shakoor anwar
शकूर अनवर

ग़ज़ल

-शकूर अनवर-

ग़म का लावा कहीं अंदर का पिघलता होगा।
तब कहीं जाके वो अशआर में ढलता होगा।।
*
जाऊॅं बतलाऊॅं शबे हिज्र* कटी है कैसे।
सैर के वास्ते वो घर से निकलता होगा।।
*
झुर्रियाॅं आपके चेहरे की पता देती हैं।
आपके हुस्न का सिक्का कभी चलता होगा।।
*
उसकी यादों के ही साए मुझे ठंडक देंगे।
वर्ना सूरज तो अभी आग उगलता होगा।।
*
और कुछ देर ठहर ऐ दिले बेताब ठहर।
चाॅंद जो छुप गया बदली में निकलता होगा।।
*
कल उसे नोच ही डालेगा ज़माना सोचो।
आज जो गुंचा* यहाॅं फूलता फलता होगा।।
*
सामने दूर जो दिखता है उजाला “अनवर”।
घर वहाँ पर किसी मजबूर का जलता होगा।।
*

शबे हिज्र* वियोग की रात
गुंचा*कली

शकूर अनवर

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