टूटना चाहे कभी ग़ुंचा ओ गुल* में रहकर। फूल माॅंगे कभी ये दिल कभी पत्थर माॅंगे।।

ghazal of shakoor anwar

ग़ज़ल

शकूर अनवर

शकूर अनवर

कौन सा क़र्ज़ है बाक़ी जो ये ख़जर माॅंगे।
क्यूॅं मेरा ताज़ा लहू तेग़ ए सितमगर* माॅंगे।।
*
जब्र* जब जब भी बढ़ा हद से ज़मीं वालों ने।
हाथ फैलाये दुआओं में पयम्बर* माॅंगे।।
*
ठहरे पानी में तबीयत कहाँ रास आती है।
फिर मेरी कश्ती ए दिल मौजे-समन्दर* माॅंगे।।
*
टूटना चाहे कभी ग़ुंचा ओ गुल* में रहकर।
फूल माॅंगे कभी ये दिल कभी पत्थर माॅंगे।।
*
इश्क़ में आहो-फ़ुग़ाॅं खेल नहीं है “अनवर”।
ऑंख रोने के लिये ख़ून बराबर माॅंगे।।
*

तेगे सितमगर*अत्याचारी की तलवार
जब्र*जुल्म,अत्याचार
पयम्बर*अवतार
मौजे समन्दर*सागर की लहरें
गुंचा ओ गुल*कली और फूल
आहो फ़ुग़ाॅं*रोना धोना, फरियाद करना

शकूर अनवर
9460851271

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