
-महेन्द्र नेह-
(कवि, गीतकार और समालोचक)
भूरे, मटमैले, अधनंगे
ये पहाड़
फैले हैं जो दूर-दूर
बनाते एक लम्बी कतार
हाथों में बाँधे हाथ
मनोहारी संकेत है ये
हमारे भविष्य के
प्रतीक हैं ये हमारी
साँझी आकांक्षाओं के
ऐसे ही ऊसर
नहीं रहेंगे ये
जैसे दिखते हैं आज
उम्मीदों की फसलें
लहलहाएँगी कल
उनकी उजाड़ बाँहों में
माथे पर दिपदिपाएँगे
आज के
लहूलुहान सपने
सूरज की किरणें भर नहीं
समूचा सौर मंडल
झिलमिलाएगा कल
इनकी झील-सी नीली आँखों में।
(महेंद्र नेह की चयनित कविताएँ पुस्तक से साभार)
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