
ग़ज़ल
-शकूर अनवर-

हमारी दोस्ती का राज़* क्या है।
हरीफ़ाना* तेरा अंदाज़ क्या है।।
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नहीं मालूम कब से चल रही है।
तेरा ऐ ज़िंदगी आग़ाज़* क्या है।।
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कोई तो है जो इसमें बोलता है।
खॅंडर में गूॅंजती आवाज़ क्या है।।
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हुकूमत है इसी की तो दिलों पर।
तुम्हारी इक निगाहे नाज़ क्या है।।
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ये दुनिया क्यूँ टिकी है नफ़रतों पर।
मुहब्बत भी ज़माना साज* क्या है।।
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उड़ानों में न आये खौ़फ़* “अनवर”।
वगरना* लज़्ज़ते-परवाज़*क्या है।।
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राज़*भेद
हरीफ़ाना*शत्रुतापूर्ण
आग़ाज़*प्रारम्भ
ज़माना साजख़ुदग़रज़ स्वार्थी
ख़ौफ़* यानी डर
वगरना*वर्ना
लज़्ज़ते-परवाज़*उड़ने का मज़ा
शकूर अनवर
9460851271