
कविता
-मनु वाशिष्ठ-

घर से दूर शहर या विदेश,
पढ़ने या नौकरी पर जाते बच्चे
देख उन्हें खुश होती मां!
पूरा परिवार,
मनाए खुशियां,बांटे मिठाई
अंदर अंदर कुछ खोती मां!
पड़ोसी देते बधाई,
लगते अच्छे, मन भर देते
धीरे धीरे सामान संजोती मां!
उसकी पसंद में,
कुछ कम ना रह जाए
लडडू, मठरी खूब बनाती मां!
रात में याद आते ही,
ये भी रखती, वो भी रखती
उनमें प्यार, दुआएं भर देती मां!
जब भी बाहर जाते,
खुश हो, दही चीनी खिलाती
पर पर्दे में छुप छुप कर रोती मां!
__ मनु वाशिष्ठ कोटा जंक्शन राजस्थान
Advertisement
मां का मन कोई नहीं समझ पाता। भुक्तभोगी हूँ।बेटा कहीं भी रहे मन का एक कोना उसके साथ ही रहता है।
सबका यही हाल है, अधिकतर बातें अपने चारों ओर होने वाली घटनाएं ही होती हैं ????