
-लक्ष्मण सिंह-

नहीं उनसे शायद मुलाकात होगी
पसर कर बैठी हिज्र की रात होगी
अमीरों की नगरी ज़हन बाअसर है
जि़गर की नहीं कोई औकात होगी
बराबर कहाँ आदमी देखिए अब
करे बात किस की बड़ी ज़ात होगी
हकीक़त चुभे झूठ दिल में यहाँ है
बगल में छुर्री मीठी बस बात होगी
सलीके नहीं सीखे हमने ऐ उल्फ़त
चले अब कहीं वस्ल पे घात होगी
चकाचौंध में ढूँढे जो इश्क़ अक्सर
हसीं हुस्न तेरी यही तो मात होगी
अदा नाज़ तो हुस्न के साथ चलते
मिले इश्क़ ओ हुस्न सौगात होगी
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