
-अनीता मैठाणी-

क्यूं कभी हंसी
तो कभी ग़म सी हो
बसंत तो कभी पतझड़ सी हो
कभी पहाड़ तो कभी समंदर सी हो.
घाव तो कभी मरहम सी हो,
क्यूं भागती तो कभी रूकी सी हो
कभी मुट्ठी तो कभी खुली हथेली सी हो
सन्न… खट्टी, तो कभी अहा… मीठी सी हो.
क्यूं कभी जमीं
तो; कभी आसमां सी हो
धानी कभी, कभी फ़िरोजा सी हो
शोर कभी, कभी गुमसुम सी हो.
कभी बचपन तो कभी; बुढ़ापे सी हो
कभी बारात तो कभी; जनाजे सी हो
उलझन कभी, कभी सुलझी सी हो
क्यूं जिंदगी तुम ऐसी हो,
मग़र जिंदगी तुम जैसी भी हो
बहुत पसंद हो
अनीता मैठाणी
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