-रानी सिंह-

1.
माँ के जाने के बाद
‘माँ की डायरी’ माँ जैसी लगती है
सुनाई देती है उसमें
माँ की चूड़ियों की खनक
और पदचाप भी
महक उठता है वजूद
पल भर के लिए
माँ की खुशबू से।
2.
माँ की डायरी में
न उनके सुख की
रागिनियाँ लिखी मिलती हैं
न ही दुःख की हहराती नदियाँ
बस खर्चों का लेखा-जोखा
जरूरतों के जोड़-तंगड़ से
तारीखों के पन्ने भरे मिलते हैं।
3.
माँ उसी तरह सम्भाल कर रखती थीं
अपनी पुरानी डायरियों को
जैसे पिता अपने शैक्षणिक प्रमाणपत्रों
व नौकरी के कागजातों को
और दादा-बाबा जमीन-जायदाद के साक्ष्यों को।
4.
माँ की डायरी बताती है कि
उसके सभी पन्ने
उनके पति और बच्चों के लिए थे
माँ के लिए एक भी पन्ना नहीं उसमें
फिर भी डायरी माँ की ही है।
5.
माँ की डायरी रखी है
माँ के बक्से में
भविष्य में जब होगा
सम्पत्ति का बंटवारा भाईयों में
माँ की डायरी तब भी पड़ी रहेगी वहीं
या फिर एक समय जाएगी कचरे में
क्योंकि माँ की डायरी कोई संपत्ति नहीं।
©️ रानी सिंह