
ग़ज़ल
शकूर अनवर
तेरी ऑंखों का मंज़र बन गया हूँ।
बहुत गहरा समन्दर बन गया हूंँ।।
*
लकीरों में मुझे क्या देखते हो।
मैं ख़ुद अपना मुक़द्दर बन गया हूंँ।।
*
मेरी वुसअत* मेरा रुतबा* वही है।
मैं सहरा* था समन्दर बन गया हूंँ।।
*
मुहब्बत में इरादे और कुछ थे।
मुहब्बत में सुख़नवर* बन गया हूंँ।।
*
यहाँ क़िस्मत बनाती है सिकन्दर।
मैं उस क़िस्मत से पत्थर बन गया हूंँ।।
*
उसे “अनवर” फ़क़त* अपना बनाकर।
मैं दुनिया भर का दिलबर बन गया हूंँ।।
*
वुसअत*विस्तार,
रुतबा*शान,शौकत,
सहरा*रेगिस्तान,
सुख़नवर”शायर कवि
फ़क़त* केवल,
शकूर अनवर
9460851271