
-वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की अनदेखी, एक ही पद्धति पर बढ़ी निर्भरता
-कोरोना काल में आमजन का बढ़ा भरोसा, सरकार नहीं दे रही बढ़ावा
-हरिओम शर्मा-

जयपुर। कम बजट में आमजन को सस्ता उपचार प्रदान करने वाली होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की देश व प्रदेश में निरंतर उपेक्षा हो रही है। यही नहीं होम्योपैथी के साथ अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियां भी निरंतर उपेक्षा की शिकार हैं। विशेष रूप से कोविडकाल में बेहतर परिणाम व शून्य साइड इफैक्ट्स के बावजूद होम्योपैथी को तवज्जो उतनी नहीं मिल पा रही जितनी मिलनी चाहिए। राजस्थान सहित देशभर में कोविड महामारी की दूसरी लहर ने यह साबित कर दिया कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को नकारा नहीं जा सकता। एलोपैथी से इतर लोगों में इस चिकित्सा पद्धति के प्रति जागरुकता का ही परिणाम रहा कि लोगों का होम्योपैथी के प्रति तेजी से रुझान बढ़ा और एलोपैथी से मोहभंग हुआ। अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति एलोपथी के बड़े चिकित्सकों ने भी होम्योपैथी के उपचार की मुक्तकंठ से प्रसंशा की। लेकिन सरकार और आला अधिकारी जीवनरक्षण में अग्रणी साबित होने के बावजूद होम्योपैथी चिकित्सा तंत्र अथवा इसके आधारभूत ढांचे को विकसित करने में रुचि नहीं ले रहे। सरकारी नियुक्तियों में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का अनुपात कम होने से बड़ी संख्या में होम्योपैथी चिकित्सक बेरोजगार बैठे हैं।
जटिल रोगों में भी हैै कारगर
हौम्योपैथी के जनक डॉ. सैमुअल हैनीमेन ने इस समान पैथी को विकसित करने के दौरान अन्य चिकित्सा पद्धति के फार्मूले को न केवल स्वयं पर आजमाया अपितु शास्वत सिद्धांत जैसे जहर को जहर काटता है….लोहे को लोहा काटता है की कसौटी पर कसा और आमजन के लिए एक सिद्ध चिकित्सा पद्धति का इजाद किया। होम्योपैथी में चिकित्सक का मुख्य कार्य रोगी द्वारा बताए गए जीवन-इतिहास एवं रोग के लक्ष्णों को सुनकर उसी प्रकार के लक्ष्णों को उत्पन्न करने वाली औषधि का चुनाव करना होता है। रोग के लक्ष्ण एवं औषधि के लक्ष्णों में जितनी अधिक समानता होगी रोगी के स्वस्थ होने की संभावना भी उतनी ही अधिक रहती है। कुछ होम्योपैथी चिकित्सकों का मानना है कि रोग का कारण शरीर में शोराविष अथवा प्रदूषण की वृद्धि है। होम्योपैथी का मूल सिद्धांत है-‘सिमिलिया सिमिविबस क्यूरेंटर’अर्थात रोगी उन्हीं औषधियों से निरापद रूप से, शीघ्रातिशीघ्र और अत्यंत प्र्रभावशाली रूप से निरोग होते हैं, जो रोगी के रोग लक्ष्णों से मिलते-जुलते लक्ष्ण उत्पन्न करने में सक्षम हैं। दूसरे शब्दों में, इस नियम के अनुसार जिस औषधि की अधिम मात्रा शरीर में विकार पैदा करती है उसी औषधि की लघु मात्रा वैसे समान लक्ष्ण वाले प्राकृतिक लक्ष्णों को नष्ट भी करती है। उदाहरण के लिए जैसे प्याज को काटने पर जुकाम के जो लक्ष्ण उभरते हैं जैसे नाक, आंख से पानी आना उसी प्रकार के जुकाम की स्थिति मे होम्योपैथी दवा एलीयम सीपा देने से ठीक भी हो जाता है। जटिल रोगोंं की स्थिति में उपचार लंबा चलता है लेकिन रोग जड़ से खत्म हो जाता है। रोग के पुन: सिर उठाने की संभावना भी नगण्य हैं। होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति एकमेव औषधि के सिद्धांत पर ही काम करती है जिसमें रोगियों को एक समय में एक ही औषधि देने का निर्देश है। लेकिन वर्तमान में इसमें बदलाव आया है और कुछ चिकित्सकों ने एकाधिक औषधियों का प्रयोग करना शुरू किया है।
रोगियों का होम्योपैथी के प्रति बढ़ रहा है भरोसा
वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में होम्योपैथी के प्रति रोगियों का भरोसा भी कहीं अधिक है। यह बात आंकड़ों से भी स्पष्ट हो चुकी है। दुनिया में दूसरे नंबर पर तेजी से होम्योपैथी का प्रसार हो रहा है। यहां तक कि विश्वभर में भी होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का विस्तार वर्तमान में एलोपैथी से ज्यादा हो रहा है। वैकल्पिक पैथी में इसकी गति आयुर्वेद से भी अधिक है। निजी क्लिनिक खुलने और अस्पतालों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में होम्योपैथी चिकित्सा तंत्र तेजी से बढ़ रहा है और रोगियों का भरोसा भी इसके प्रति बढ़ा है।
कोरोनाकाल में उपचार साबित हुआ रामबाण
कोरोना की दूसरी लहर में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति ने लोगों के बीच तेजी से जगह बनाई। जयपुर सहित बड़े शहरों में लोगों ने कोरोना से बचाव में होम्योपैथी की दवाओं में विश्वास जताया और दूसरी लहर से बचे। वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक व एमपीके होम्योपैथी विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रो. डॉ. एसएन शर्मा ने बताया कि इस दौरान श्वांस संबंधी रोग के उपचार (श्वसन तंत्र या रेस्पोरेटरी सिस्टम) के लिए होम्योपैथी की दवा आर्सेनिक एलवम, वैनेडियम,एस्पीडोस्पर्मा तथा कार्बोवेज पर खुलकर भरोसा जताया। उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ स्थित स्टेट होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ योगेन्द्र माथुर के अनुसार कोरोना की तीसरी लहर का डेल्टा वेरियेंट बेहद खतरनाक होगा। इससे बचाव के लिए लोगों को प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए बच्चे, महिला एवं पुरुषों को होम्योपैथी की दवा केनोवा का प्रयोग करना चाहिए।
एक दशक से चिकित्सकों को भर्ती का इंतजार
गत वर्ष होम्योपैथिक चिकित्सा विकास महासंघ की ओर से चिकित्सकों के नए पदों की स्वीकृति के लिए राजस्थान के तत्कालीन चिकित्सा मंत्री डॉ रघु शर्मा व अन्य के नाम ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन में महासंघ जोधपुर के उपाध्यक्ष डॉ धीरज गोयल ने बताया कि राजस्थान में 600 होम्योपैथी चिकित्सक न्यूनतम मानदेय पर पिछले 8 साल से संविदा पर कार्यरत हैं। सरकारी भेदभाव के कारण प्रदेश में मात्र 296 होम्योपैथी चिकित्सक ही कार्यरत हैं जबकि 9512 चिकित्सक पंजीकृत हैं। होम्योपैथी विभाग की ओर से सरकार को 2892 पदों के सृजन हेतु पत्र भी लिखा गया है लेकिन सरकार की ओर से अभी तक कोई कार्रवाई अमल में नहीं लाई गई है। इससे प्रदेश में होम्योपैथी चिकित्सकों का भविष्य अंधकारमय में है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं)